संस्कृत सुभाषित हिंदी अर्थ सहित | पिण्डे पिण्डे मतिर्भिन्ना | Sanskrit Subhashit |


पिण्डे पिण्डे मतिर्भिन्ना

|| सुभाषित ||

पिण्डे पिण्डे मतिर्भिन्ना कुण्डे कुण्डे नवं पयः |
जातौ जातौ नवचाराः नवावाणी मुखे मुखे ||

पिण्डे पिण्डे मतिर्भिन्ना | Sanskrit Subhashit |
संस्कृत सुभाषित

|| अर्थ ||
दुनिया में हर एक मनुष्य की मति यानी बुद्धि और विचारधारा अलग अलग होती है
हर एक कुण्डे में पानी भी अलग अलग होता है अर्थात 
( हर एक तालाब में अलग अलग प्रकार का पानी होता है )
हर एक वर्ण की अलग अलग अपनी जीने की राह होती है

इसलिए ऋषिमुनियों ने कहा है
"जितने मुँह उतनी बाते"

|| जय श्री कृष्ण ||
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