गणपति जी की आरती | Ganpati ji ki Aarti |
|| गपपति जी की आरती ||
गणपति की सेवा मंगल मेवा सेवा से सब वि घ्न टरें |
तीन लोक तैंतीस देवता द्वारा खड़े सब अर्ज करें ||
ऋद्धि -सिद्धि दक्षिण वाम विराजे आनन्द सौं चंवर ढुरें |
धूप दीप और लिए आरती भक्त खड़े जयकार करें ||
गुड़ के मोदक भोग लगत है मूषक वाहन चढ़े सरें |
सौम्य सेवा गणपति की विध्न भाग जा दूर परें ||
भादों मास शुक्ल चतुर्थी दोपारा भरपूर भरें |
लियो जनम गणपति प्रभु ने दुर्गा मन आनन्द भरें ||
श्री शंकर के आनन्द उपज्यो, नाम सुमरयां सब विघ्न टरें |
आन विधाता बैठे आसन इन्द्र अप्सरा नृत्य करें ||
देखि वेद ब्रह्माजी जाको विघ्न विनाशन रूप अनूप करें |
पग खम्बा सा उदर पुष्ट है चन्द्रमा हास्य करें ||
दे श्राप चन्द्रदेव को कलाहीन तत्काल करें |
चौदह लोक में फिरें गणपति तीन लोक में राज्य करें ||
उठ प्रभात जो आरती गावे ताके सिर यश छत्र फिरें |
गणपति जी की पूजा पहले करनी काम सभी निर्विघ्न करें ||
श्री गणपति जी की हाथ जोड़कर स्तुति करें |
|| गणपति जी की आरती समाप्तः ||
गणपति जी की आरती | Ganpati ji ki Aarti |
Reviewed by Bijal Purohit
on
12:09 pm
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