गुरुवार की व्रत-कथा | बृहस्पति व्रत-कथा | Guruvar Vratkatha |

                                     

   गुरुवार व्रत कथा 

बृहस्पति व्रत-कथा | Guruvar Vratkatha |
गुरुवार व्रतकथा 

प्राचीन समय की बात है, किसी राज्य में एक बड़ा प्रतापी तथा दानी राजा राज्य करता था |
वह प्रत्येक गुरूवार को व्रत रखता एवं भूखे और गरीबों को दान देकर पुण्य प्राप्त करता था परन्तु यह बात उसकी रानी को अच्छी नहीं लगती थी |
वह न तो व्रत करती थी और नहीं किसी को एक भी पैसा दान में देती थी और राजा को भी ऐसा करने से मना करती थी |

एक समय की बात है, राजा शिकार खेलने को वन को चले गए थे |
घर पर रानी और दासी थी | उसी समय गुरु वृहस्पतिदेव साधु का रूप धारण कर के दरवाजे पर भिक्षा मांगने को आए |
साधु ने जब रानी से भिक्षा मांगी तो वह कहने लगी,
हे साधु महाराज, मैं इस दान और पुण्य से तंग आ गई हूं | आप कोई ऐसा उपाय बताएं, 
जिससे की सारा धन नष्ट हो जाए और मैं आराम से रह सकूं।

वृहस्पतिदेव ने कहा, तुम बड़ी विचित्र हो, संतान और धन से कोई दुखी होता है | अगर अधिक धन है तो इसे शुभ कार्यों में लगाओ,
कुवांरी कन्या का विवाह कराओ, विद्यालय और बाग-बगीचे का निर्माण कराओ, जिससे तुम्हारे दोनों लोक सुधरें, परन्तु साधु की इन बातों से रानी को ख़ुशी नहीं हुई |
उसने कहा-मुझे ऐसे धन की आवश्यकता नहीं है, जिसे में दान दूं और जिसे संभालने में मेरा समय नष्ट हो जाए | 

तब साधु ने कहा-यदि तुम्हारी ऐसी इच्छा है तो मैं जैसा तुम्हे बताता हूं तुम वैसा ही करना। वृहस्पतिवार के दिन तुम घर को गोबर से लीपना,
अपने केशों को पीली मिटटी से धोना, केशों को धोते समय स्नान करना, 
राजा से हजामत बनाने को कहना, भोजन में मास मदिरा खाना, कपड़ा धोबी के यहां धुलने डालना, इस प्रकार सात वृहस्पतिवार करने से तुम्हारा समस्त धन नष्ट हो जाएगा, इतना कह कर साधु रुपी वृहस्पतिदेव अंतर्ध्यान हो गए |
साधु के कहे अनुसार करते हुए रानी को केवल तीन वृहस्पतिवार ही बीते थे कि उसकी समस्त धन-सम्पति नष्ट हो गई |
भोजन के लिए राजा का परिवार तरसने लगा |
तब एक दिन राजा रानी से बोला- हे रानी, तुम यहीं रहो, मैं दूसरे देश को जाता हूं, क्योंकि यहाँ सभी लोग मुझे जानते है |

इसलिए मैं कोई छोटा कार्य नहीं कर सकता, ऐसा कहकर राजा परदेश चला गया |  वहां वह जंगल से लकड़ी काटकर लाता और शहर में बेचता, इस तरह वह अपना जीवन व्यतीत करने लगा |
इधर, राजा के परदेश जाते ही रानी और दासी दुखी रहने लगी | 

एक बार जब रानी और दासी को सात दिन तक बिना भोजन के रहना पड़ा, तो रानी ने अपनी दासी से कहा-हे दासी, पास ही के नगर में मेरी बहन रहती है |
वह बड़ी धनवान है |
तू उसके पास जा और ले आ ताकि थोड़ा-बहुत गुजर-बसर हो जाए |
दासी रानी के बहन के पास गई |

उस दिन वृहस्पतिवार था और रानी की बहन उस समय बृस्पतिवार व्रत की कथा सुन रही थी | दासी ने रानी की बहन को अपनी रानी का संदेश दिया, लेकिन रानी की बड़ी बहन ने कोई उत्तर नहीं दिया।

जब दासी को रानी की बहन से कोई उत्तर नहीं मिला तो वह बहुत दुखी हुई और उसे क्रोध भी आया |
दासी ने वापस आकर रानी को सारी बात बता दी.सुनकर रानी ने अपने भाग्य को कोसा, उधर रानी की बहन ने सोचा कि मेरी बहन की दासी आई थी, परन्तु मैं उससे नहीं बोली, इससे वह बहुत दुखी हुई होगी | 

रानी बोली-बहन , तुमसे कयास छुपाऊं, हमारे घर में खाने तक को अनाज नहीं था | ऐसा कहते-कहते रानी की आंखे भर आई |
उसने दासी समेत पिछले सात दिनों से भूखे रहने तक की बात अपनी बहन को विस्तारपूर्वक सुना दी |

रानी की बहन बोली-देखो बहन, भगवान वृहस्पतिदेव सबकी मनोकामना को पूर्ण करते है | देखो, शयद तुम्हारे घर में अनाज रखा हो |
पहले तो रानी को विश्वास नहीं हुआ पर बहन के आग्रह करने पर उसने अपनी दासी को अंदर भेजा तो उसे सचमुच अनाज से भरा एक घड़ा मिल गया |

यह देखकर दासी को बड़ी हैरानी हुई |
दासी रानी से कहने लगी-हे रानी, जब हमको भोजन नहीं मिलता तो हम व्रत ही तो करते हैं, इसलिए क्यों न इनसे व्रत और कथा की विधि पूछ ली जाए, ताकि हम भी कृत कर सके | 
तब रानी ने अपनी बहन से वृहस्पतिवार व्रत के बारे में पूछा,

उसकी बहन ने बताया, वृहस्पतिवार के व्रत में चने की दाल और मुनक्का से विष्णु भगवान का केले की जड़ में पूजन करें तथा दीपक जलाएं, व्रत कथा सुने और पीला भोजन ही करें। इससे वृहस्पतिदेव प्रसन्न होते हैं |
व्रत और पूजन विधि बतलाकर रानी की बहन अपने घर लौट गई |

सातवे रोज बाद जब गुरूवार आया तो रानी और दासी ने निश्चयनुसार व्रत रखा |
घुड़साल में जा कर चना और गुड़ बिन लाई और फिर उसने दाल से केले की जड़ तथा विष्णु भगवान का पूजन किया।अब पीला भोजन कहां से आए इस बात को लेकर दोनों बहुत दुखी थे |
युकी उन्होंने व्रत रखा था इसलिए गुरुदेव उनपर प्रसन्न थे |
इसलिए वे एक साधारण व्यक्ति का रूप धारण कर दो थालों में सुन्दर पीला भोजन दासी को दे गए |
भोजन पाकर दासी प्रसन्न हुई और फिर रानी के  साथ  मिलकर भोजन ग्रहण किया।

उसके बाद वे सभी गुरूवार को व्रत और  पूजन करने लगी.बृहस्पति  भगवान की कृपा से उनके पास फिर से धन-सम्पति हो गया | लेकिन फिर से रानी आलसी हो गयी |

तब दासी बोली देखो रानी तुम पहले भी  आलस करती थी,तुम्हे धन रखने में कष्ट होता था | इसी कारण सब नष्ट हो गया था | अब जब भगवान् गुरु की कृपा से धन मिला है तो क्यों आलस करती हो ?

बड़ी मुसीबतो से हमने यह धन पाया है, इसलिए हमें दान-पुण्य करना चाहिए, भूखे मनुष्यो को भोजन कराना चाहिए, धन को शुभ कार्यो में लगाना चाहिए | 
जिस से तुम्हारे वंश का गौरव बढ़ेगा | 
इस प्रकार से वह धन को शुभ कार्यो में लगाने लगी और उसका सामाजिक मान-सन्मान बढ़ने लगा |

|| बृहस्पतिवार व्रत कथा समाप्तः || 

गुरुवार की व्रत-कथा | बृहस्पति व्रत-कथा | Guruvar Vratkatha | गुरुवार की व्रत-कथा | बृहस्पति व्रत-कथा | Guruvar Vratkatha | Reviewed by Bijal Purohit on 2:04 pm Rating: 5

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