सरस्वती आरती | Saraswati aarti |
सरस्वती जी की आरती
ॐ जय विणे वाली,
मैया जय विणे वाली |
ऋद्धि -सिद्धि की रहती,
हाथ तेरे ताली || ॐ जय विणे ||
ऋषि मुनियों की बुद्धि को,
शुद्ध तू ही करती |
स्वर्ग की भांति,
शुद्ध तू ही करती || ॐ जय विणे ||
ज्ञान पिता को देती,
गगन शब्द से तू |
विश्व की उत्पन्न करती,
आदि शक्ति से तू || ॐ जय विणे ||
हंस वाहिनी दीजे,
भिक्षा दर्शन को |
मेरे मन में केवल,
इच्छा दर्शन की || ॐ जय विणे ||
ज्योति जगाकर नित्य,
यह आरती जो गावे |
भव सागर के दुख में,
गोता न कभी खावे || ॐ जय विणे ||
|| सरस्वती जी की आरती समाप्तः ||
सरस्वती आरती | Saraswati aarti |
Reviewed by Bijal Purohit
on
1:33 pm
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