विजया पार्वती व्रत | Vijaya Parvati Vrat Katha |


विजया पार्वती व्रत

विजया पार्वती व्रत | Vijaya Parvati Vrat Katha |
विजया पार्वती कथा 


हर साल आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी के दिन एक विशेष व्रत किया जाता है जिसे जया-पार्वती व्रत अथवा विजया-पार्वती व्रत के नाम से जाना जाता है |
यह व्रत श्रवण से पहले आता है इसीलिए यह चमत्कारी व्रत माना गया है |
शिव-पार्वती को प्रसन्न करने तथा उनकी कृपा पाने के लिए यह व्रत बहुत महत्वपूर्ण है |

मान्यताओं के अनुसार इस व्रत का रहस्य भगवान विष्णु ने मां लक्ष्मी को बताया था | यह मालवा क्षेत्र का लोकप्रिय पर्व है और बहुत कुछ गणगौर, हरतालिका,
मंगला गौरी और सौभाग्य सुंदरी व्रत की तरह है |
इस व्रत से माता पार्वती को प्रसन्न किया जाता है | पुराणों के अनुसार यह व्रत स्त्रियों द्वारा किया जाता है |
माना जाता है कि यह व्रत करने से स्त्रियों को अखंड सौभाग्यवती होने का वरदान प्राप्त होता है |
कहीं इसे सिर्फ १ दिन और कहीं इसे ५ दिन तक मनाया जाता है |
बालू रेत का हाथी बनाकर उन पर ५ प्रकार के फल,फूल और प्रसाद चढ़ाए जाते हैं |

विजया पार्वती व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार किसी समय कौडिन्य नगर में वामन नाम का एक योग्य ब्राह्मण रहता था |
उसकी पत्नी का नाम सत्या था | उनके घर में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी,लेकिन उनके यहां संतान नहीं होने से वे बहुत दुखी रहते थे |
एक दिन नारदजी उनके घर पधारे | उन्होंने नारद मुनि की खूब सेवा की और अपनी समस्या का समाधान पूछा |
तब नारदजी ने उन्हें बताया कि तुम्हारे नगर के बाहर जो वन है, उनके दक्षिणी भाग में बिल्व वृक्ष के निचे भगवान शिव,
माता पार्वती के साथ लिंगरुप में विराजित हैं | उनकी पूजा करने से तुम्हारी मनोकामना अवश्य ही पूरी होगी |

तब ब्राह्मण दंपति ने उस शिवलिंग को ढूंढकर उसकी विधि-विधान से पूजा-अर्चना की | इस प्रकार पूजा करने का क्रम चलता रहा और ५ वर्ष बीत गए |
एक दिन जब वह ब्राह्मण पूजन के लिए फूल तोड़ रहा था तभी उसे सांप ने काट लिया और वह वही जंगल में ही गिर गया |
ब्राह्मण जब काफ़ी देर तक घर नहीं लौटा तो उसकी पत्नी उसे ढूंढने आई | पति को इस हालत में देख वह रोने लगी वन देवता व माता पार्वती का स्मरण किया |
ब्राह्मणी की पुकार सुनकर वन देवता और मां पार्वती चली आईं और ब्राह्मण के मुख में अमृत डाल दिया जससे ब्राह्मण उठ बैठा |
तब ब्राह्मण दंपति ने माता पार्वती का पूजन किया |

माता पार्वती ने उनकी पूजा से प्रसन्न होकर उन्हें वर मांगने के लिए कहा |
तब दोनों ने संतान प्राप्ति की इच्छा व्यक्त की, तब माता पार्वती ने उन्हें विजया पार्वती व्रत करने की बात कही |
आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी के दिन उस ब्राह्मण दंपति ने विधिपूर्वक माता पार्वती का यह व्रत किया जिससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई |
इस दिन व्रत करने वालों को पुत्ररत्न की प्राप्ति होती है तथा उनका अखंड सौभाग्य भी बना रहता है |

||  विजया पार्वती व्रत सम्पूणः || 


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