ऋषि पंचमी व्रत कथा | Rushi Panchami Vrat Katha |
ऋषि पंचमी व्रत कथा
ऋषि पंचमी कथा
भाद्र पद शुक्ल पक्ष की पंचमी को ऋषि पंचमी का व्रत किया जाता हैं |
यह व्रत ज्ञात अज्ञात पापों के शमन के लिए किया जाता हैं |
इस व्रत के सात ऋषियों के सहित देवी अरुन्धती का पूजन होता है |
इसीलिए इसे ऋषि पंचमी के नाम से जाना जाता है |
व्रत विधि
इस दिन व्रत करने वाले को चाहित कि वह प्रातः कल से मध्यान्ह के समय किसी नदी या तालाब पर जाए ! वहां अपमार्गा (चिड़चिड़ा) के दातून करे |
मिट्टी लगाकर स्नान करे |
इसके बाद पंचगव्य ( दूध, दही, घी, गोबर, गौमूत्र ) ले ! तत्पश्चात घर आकर शास्त्र और विधान से किसी ब्राहमण से पूजन आदि कराकर कथा सुने। इस व्रत में नमक खाना वर्जित है |
इस दिन प्रातः लोग दही और साठी का चावल खाते है |
खेत से जोते हुए अन्न का सेवन भी वर्जित है |
दिन में एक बार ही भोजन का विधान है |
कलश आदि पूजन सामग्री को ब्राह्मण भोजन कराकर प्रसाद पाना चाहिए |
सप्त ऋषि
१ - कश्यपाय नमः२ - अत्रये नमः३ - भारद्वाजाय नमः४ - विश्वामित्राय नमः५ - गौतमाय नमः६ - जमदअग्नये नमः७ - वाशिष्ठाये नमः
अंत में अरुन्धत्ये नमः करके पूजन संपन्न करना चाहिए।
कथा शास्त्रानुसार
राजा सीताश्व ने ब्रह्मा जी से पूछा - हे देव देवेश मैंने आपके मुख से बहुत से व्रत सुने। अब मेरे मन में किसी एक पाप विनाशक व्रत के बारे में जानने की अभिलाषा है,
कृपा करके आप उस व्रत को कहे |ब्रह्मा जी ने कहा - राजन में उस व्रत को कहता हूँ जो समस्त पापों का विनाशक है |
राजन उस व्रत का नाम ऋषि पंचमी व्रत है |
इसी प्रसंग में महात्मा लोग पुरानी बात कहा करते हैं कि विदर्भ देश की राजधानी में उत्तंग मानक एक ब्राह्मण रहता था |
उसकी सुशीला नाम की भार्या ( पत्नी ) थी वह पति सेवा में पारायण थी |
सुशीला के गर्भ से दो संतान उत्पन्न हुई एक पुत्र और दूसरी पुत्री थी |
पुत्र सर्वगुण संपन्न था, उसने वेद धर्म आदि का अच्छा अध्ययन किया था |
उत्तंग ब्राह्मण ने अपनी कन्या का विवाह अच्छे कुल में कर दिया।
पर हे राजन प्रारब्ध योग से वह कन्या विधवा हो गई |
पतिव्रता धर्म का पालन करते हुए वह कन्या अपने पिता के घर आकर समय व्यतीत करने लगी |
उत्तंग ब्राह्मण इस दुःख से दुखी हो अपने पुत्र को घर पर छोड़ अपने पत्नी तथा पुत्री के साथ गंगा जी के तट पर जाकर निवास करने लगा |
वहां जाकर अपने शिष्यों को वेद और अध्ययन कराने लगा |
वह लड़की अपने पिता की सेवाश्रुषा करने लगी |
एक दिन वह लड़की अपने पिता की सेवा करते थक गई और तब एक पत्थर पर जाकर सो गई |
शयन करते ही उसके शरीर में कीड़े लग गए और सारा शरीर कृमिमय हो गया |
गुरु पुत्री की ऐसी दशा देखकर एक शिष्य बहुत ही दुखी हो कर गुरु पत्नी के पास जाकर निवेदन कर कहा- हे माते - हम कुछ नहीं जानते आपके उस सत चरित्र वाली आपकी पुत्री को क्या हो गया है |
उनकी ऐसी दशा क्यों हो गई है ? आज उनका शरीर दिखाई नहीं देता. मात्र कृमिया ही कृमिया दिखाई दे रही हैं |
माँ को ये वचन वज्राघात से लगे | माँ तुरंत अपनी पुत्री के समीप गई |
पुत्री की ऐसी अवस्था को देख कर विलाप करने लगी |
छाती पर हाथ पीटती हुई पृथ्वी पर गिर पड़ी और मुक्षित हो गई |
कुछ देर बाद होश आया तो, अपनी पुत्री को आँचल से पोछती हुई, अपने कंधे का सहारा देती हुई उसके पिता के पास ले आई और बोली - हे स्वामी देखिये - यह अर्ध रात्रि का समय हैं और यह सो रही थी |
सोते समय इसके शरीर में कीड़े पद गए |
ब्राह्मण समाधिस्थ हो उस लड़की के पूर्व जन्म के पापों को देखकर बोले - हे प्रिये यह पूर्व जन्म में ब्राह्मणी थी,
उस जन्म में रजस्वला होकर भोजन आदि के पत्रों को स्पर्श आदि का विचार नहीं किया सभी को हाथ लगा दिया |
उसी पाप कर्म के कारण इसका शरीर कोढ़ो से ढक गया हैं |
ही प्रिये - रजस्वला के समय स्री पापिन होती हैं |
पहले दिन चाण्डालिनी, दूसरे दिन ब्रह्मघातिनी, तीसरे दिन धोबिन, चौथे दिन शुद्ध होती हैं |
उसी जन्म में अपने सखियों के दुह्संग से ऋषि पंचमी व्रत को देखकर भी उसका अपमान कर दिया था |
दर्शन के प्रभाव वश इसे पुनः ब्राह्मण कुल में जन्म मिला हैं |
सुशीला ने कहा हे स्वामी ऐसे प्रभावी व्रत को हमे भी बताइये, जिसके करने से महान पुण्य की प्राप्ति होती हैं |
ऋषि ब्राह्मण ने कहा - देवी ध्यान लगा कर सुने - यह व्रत तीनो प्रकार के पापों का नाश करने वाला है,स्त्रियों को सौभाग्य प्रदान करने वाला है और धन समपत्त करने वाला हैं. इस व्रत में संदेह नहीं करना चाहिए।
व्रत सम्पूर्ण विधि
देवी भाद्र पद शुक्ल पक्ष की पंचमी को किसी जलाशय में जाकर अपमार्ग का दातून कर मिटटी के लेप से स्नान कर व्रत नियम को धारण करना चाहिए। तत्पश्चात सप्त ऋषियों का शास्त्रोक्त पद्धति के आधार पर पूजन करना चाहिए।
ऋषियों को सुन्दर अधोवस्त्र, यज्ञोपवीत,उपवस्त्र,से अलंकृत करना चाहिए। अच्छे २ फल नैवैद्य लेकर इनके साथ अर्घ्यदान करना चाहिए। उस समय सप्त ऋषियों
१ - कश्यपाय नमः
२ - अत्रये नमः
३ - भरद्वाजाय नमः
४ - विश्वामित्राय नमः
५ - गौतमाय नमः
६ -जमदअग्रये नमः
७ - वाशिष्ठाये नमः
को नमस्कार कर अर्घ्य दान कर बोले - ऋषि गण कृपया मेरा अर्घ्य दान स्वीकार करे | और प्रसन्न हो |अंत में अरुन्धत्ये नमः करके पूजन संपन्न करना चाहिए |इस व्रत में शाग का भोजन करना चाहिए |सभी तीर्थो में स्नान आदि से जो फल प्राप्त होता है वह सभी इस एक मात्र व्रत के प्रभाव से मिल जाते हैं |जो इस व्रत को करते हैं वे सुख सम्पन, रूप गुण सम्पन, पूर्ण काया से युक्त।एवं पुत्र पुत्रादि आदि गुणों से भी सदा ही संपन्न रहते हैं |इस लोक के सभी भोगो को भोग कर परलोक में बैकुंठ की प्राप्ति होती हैं |
ब्रह्माण्ड पुराण ऋषि पंचमी कथा
ब्रह्माण्ड पुराण से ली गई ऋषि पंचमी कथा के अनुसार सत्य युग में श्येनजित नामक एक राजा राज्य करता था |
उसके राज्य में सुमित्र नामका एक ब्राह्मण रहा करता था | वह वेदों पारंगत था |
वह ब्राह्मण खेती द्वारा जीवन निर्वाह व् परिवार का भरण - पोषण करता था |
उसकी पत्नी जयश्री सती साध्वी थी, वह खेती के कार्यो में भी अपने पति का सहयोग करती थी |
एक बार रजस्वला अवस्था में अनजाने में उनके घर का सब कार्य किया और पति का स्पर्श भी कर लिया।
देवयोग से पति तथा पत्नी का शरीर अंत एक साथ हो गया |
रजस्वला अवस्था में स्पर्श आदि का विचार न करने से स्री कुतिया और पति ने बैल की योनि प्राप्त की ! परन्तु पूर्व जन्म में किये गए धार्मिक कर्मो के कारण पूर्व जन्म की स्मृति उन्हें बनी रही |
संयोग वश इस जन्म में भी अपने ही घर में साथ २ अपने पुत्र और पुत्र वधू के साथ रह रहे थे |
ब्राह्मण के पुत्र का नाम सुमति था, वह भी पिता की भांति वेदों का विद्वान था | पितृपक्ष में उसने अपने माता - पिता के श्राद्ध के उद्द्देश्य से पत्नी से कहकर खीर बनाई और ब्राह्मणों को निमंत्रण दिया |
उधर एक सर्प ने आकर उस खीर को विषाक्त कर दिया।
कुतिया बनी ब्राह्मणी सब देख रही थी, उसने सोचा यदि इस खीर को ब्राह्मण खायेगे और सुमति को पाप लगेगा।
ऐसा विचार कर सुमति की पत्नी बहुत क्रोधित हुई और चूल्हे से जलती हुई लकड़ी निकाल कर उसकी पिटाई कर दी |
उस दिन उसने कुतिया को भोजन भी नहीं दिया।
रात्रि में कुतिया ने बैल से सारी घटना बताई। बैल ने कहा आज तो मुझे भी कुछ खाने को नहीं दिया, जबकि सारे दिन मुझसे खेतो पर काम लिया।
सुमति हम दोनों के ही उद्देश्य से श्राद्ध कर रहा हैं, और हमें ही भूखे मार रहा हैं. इस तरह से हम लोगों के भूखे रह जाने से तो इनका श्राद्ध करना व्यर्थ हो जाएगा।
सुमति द्वार पर बैठ इन दोनों की वार्तालाप सुन रहा था, उसे पशुओं की बोली भली भांति आती थी | उसने जब ये बातें सुनी तो उसे बहुत दुःख हुआ, कि मेरे माता पिता इस निष्कृष्ट योनि में जन्मे हैं |
वह दौड़ता हुआ एक ऋषि के पास पंहुचा और सारा वृतान्त सुना कर अपने माता पिता के इस योनि में पड़ने का कारण और मुक्ति का उपाय पूछा।
ऋषि ने ध्यान और योगबल से सारा वृतांत जान लिया। ऋषि ने सुमति से कहा तुम भाद्र शुक्ल पंचमी का व्रत करो, उस व्रत के प्रभाव से तुम्हारे माता - पिता को अवश्य मुक्ति मिल जायेगी।
माता पिता भक्त सुमति ने ऋषि पंचमी का व्रत किया। जिसके प्रभाव से उसके माता पिता को पशु योनि से मुक्ति मिल गई |
यह व्रत शरीर के अशुद्ध अवस्था में किये गए स्पर्शास्पर्श तथा अन्य पापों के प्रायश्चित के रूप में किया जाता हैं |
|| ऋषि पंचमी व्रत कथा समाप्तः ||
ऋषि पंचमी व्रत कथा | Rushi Panchami Vrat Katha |
Reviewed by Bijal Purohit
on
2:44 am
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