श्री गजेन्द्र मोक्ष कथा | Gajendra Moksha Hindi |
श्री गजेन्द्र मोक्ष कथा सम्पूर्ण हिंदी में
श्री गजेन्द्र मोक्ष कथा |
कृष्ण ने भागवत पुराण में कहा है
जो मनुष्य इसका पाठ करेगा उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं होगा
वो मुझे प्राप्त करेगा
कथा सुनने से भी कृष्ण प्रिय बन जाएंगे
कैसे और कब करे यह पाठ
गजेन्द्रमोक्ष कथा माहात्म्य
यह एक ऐसी कथा है जिसके भावपूर्वक सुनने से ही आँखे अश्रुपूरित हो जाएगी
इस कथा में करुणरस और भक्तिरस का समन्वय है |
यह उत्तम स्तोत्र ( कथा ) श्रीमद भागवत महापुराण के अष्टम यानी आठवे स्कन्द के
दूसरे,तीसरे,चौथे अध्याय में वर्णित है
इस स्तुति को गजेंद्र अपने ह्रदय में भगवान् को स्थिर कर मन में ही स्तवन करता है
कब और कैसे करे इसका पाठ ?
इस स्तवन का पाठ ब्राह्ममुहूर्त में भगवान् श्री हरी के सामने या कही पर भी भाव पूर्वक कर सकते है | इसका निरंतर स्तवन करने से मनुष्य सभी पापो से मुक्त हो जाता है,सभी कष्टों का निवारण हो जाता है,दुःस्वप्नो का विनाश हो जाता है, सभी प्रकार के विघ्नो का विनाश हो जाता है और मृत्यु पर्यन्त कभी नरक में नहीं जाता ऐसा स्वयं भगवान् का वचन है |
गजेंद्र मोक्ष का स्तवन हिंदी में ( गजेन्द्रमोक्ष कथा )
अपनी मति के द्वारा पिछले अध्याय यानी अध्याय २-३ में वर्णित रीति से निश्चय करके भगवान् को अपने ह्रदय में स्थिर करके गजराज अपने पूर्वजन्म में सीखकर कंठस्थ किया हुआ सर्वश्रेष्ठ बार बार पढ़ने और सुनने लायक इस स्तवन का मन ही मन में पाठ करने लगा || १ ||
गजेंद्र ने कहा
जिनके प्रवेश करने पर जिनको प्राप्त करके हमारा यह शरीर जागृत हो जाता है
ॐ शब्द से लक्षित उन सर्वेश्वर सर्वसमर्थ परमेश्वर को मन से नमन करते है || २ ||
जिनके सहारे यह पूरा जगत टिका हुआ है,जिनसे यह जगत की उत्पत्ति हुई है,
जो स्वयं ही इसके रूपमे है,फिर भी जो विलक्षण और श्रेष्ठ है ऐसे भगवान् की में शरण लेता हु || ३ ||
अपने संकप के कारण संकल्प शक्ति से इस रचे हुए प्रकटकाल और प्रलयकाल में उसी प्रकार अप्रकट रहनेवाले
इस शास्त्र में प्रसिद्ध जगत के कारणरूप प्रभु मेरी रक्षा करे || ४ ||
समय के प्रवाह सम्पूर्ण लोकोकेँ एवं ब्रह्मादि देवो के पञ्चभूतो में प्रवेश करनेपर
सम्पूर्ण कारणों के उनकी प्रकृति में लीन हो जानेपर उस समय दुर्ज्ञेय तथा अपार अन्धकार रूप प्रकृति ही बच रही थी | उसी अन्धकार से परे अपने परमधाम में सर्वव्यापक भगवान सभी और प्रकाशमान रहते है वो प्रभु मेरी रक्षा करे || ५ ||
अलग अलग रूपों से अपनी लीलाओ को प्रकार करनेवाले, फिर भी भक्त लोग उनकी लीलाओ को नहीं समझपाते, उसी प्रकार सत्वप्रधान देवताaur ऋषिमुनि आदि भी जिनकी लीलाओ को नहीं समझ पाते तो साधारण मनुष्य कैसे जान पायेगा ऐसे दुर्गम लीलाकृत लीला करनेवाले प्रभु मेरी रक्षा करे || ६ ||
सभी प्रकार की आसक्ति रहित, सभी जोवोमे आत्मबुद्धि रखनेवाले, जो साधु के जैसे स्वभाव वाले है, ऋषिमुनिगण जिनके स्वरूपका साक्षात्कार करते है और अपनी इच्छा से वे ऋषिगण अखण्ड ब्रह्मचर्य आदि व्रत कर जिनके व्रतों का पालन करते है वो प्रभु मेरी रक्षा करे || ७ ||
जिनका हमारी तरह कर्मयुक्त न हो तो जन्म होता है या जो स्वयं जन्म लेते है और नाही जिनके द्वारा अहंकार प्रेरित कर्म होते है, जो निर्गुण स्वरूपवाले भी है जिसका कोई नाम नहीं है,फिर भी समय समय पर सगुन स्वरुप धारण करते है और जगत का कल्याण करते है
( पोषण भी करते है और संहार भी करते है ) || ८ ||
अनंतशक्ति संपन्न उन भगवान् परब्रह्म परमेश्वर को नमस्कार है
उन निर्गुण और सगुन स्वरूप वाले भगवान् को बारम्बार नमस्कार है || ९ ||
स्वयं ही प्रकाशित भगवान् को नमस्कार है
जो मन वाणी से परे है ऐसे भगवान को बार बार नमन है || १० ||
मोक्ष सुख देनेवाले मोक्ष और सुख की
अनुभूति करानेवाले प्रभुको नमस्कार है || ११ ||
सात्विक गुणों को स्वीकार करके शांत, रजोगुण को स्वीकार करके घोर और तमोगुण को स्वीकार करके प्रतितहोनेवाले भेदभावरहित समभाव से
रहनेवाले प्रभुको नमस्कार है || १२ ||
शरीरादि इन्द्रियों के स्वामी पिण्डोंके ज्ञाता सबके स्वामी एवं साक्षीरूप आपको नमस्कार है |
अन्तर्यामी जो बिना कहे ही सबकुछ जानलेते है
ऐसे प्रभुको नमस्कार है || 13 ||
सभी विषयो के ज्ञाता सभी के कारणरूप अविद्याके सूचित होनेवाले सभी विषयो में अविद्यारूप में आभासित होनेवाले आपको नमस्कार है || १४ ||
सभीके कारण होने क्व बावजूद्द कारणरहित आपको नमस्कार है
सम्पूर्ण वेदो एवं शास्त्रों में परम तत्व मोक्षस्वरूप आपको नमस्कार है || १५ ||
जो त्रिगुणस्वरूप में काष्ठो में छिपे हुए ज्ञानमय अग्नि है
जिनके मन में सृष्टि रचना की चेतना जागृत हो जाती है
ज्ञानी लोग भी आपको ज्ञानस्वरूप में प्रकाशित करते रहते है
उन प्रभुको में नमस्कार करता हु || १६ ||
मेरे जैसे अविद्याग्रस्त जिव की अविद्यारूपी फांसी को काटनेवाले
दयालु परमेश्वर आलस्य न करनेवाले प्रभुको मेरा नमस्कार है
अपने ही अंशसे सम्पूर्ण जीवोंके मनमे अन्तर्यामी रूपमे रहनेवाले
अनंत प्रभु को नमस्कार है || १७ ||
देह,पुत्र,परिवार,मित्र,घर,संपत्ति,में आसक्त लोगो के द्वारा कठिनतासे
प्राप्तहोनेवाले सर्वसमर्थ प्रभुको मेरा नमस्कार है || १८ ||
जिन्हे धर्म धन और मोक्ष की कामना से भजनेवाले उपासना करनेवाले लोग अपनी मनचाही गति पा लेते है वे अतिशय दयालु कृपालु प्रभु मुझे इस आपत्तियों से सदा के लिए मुक्त कराये || १९ ||
जिनके अनन्य भक्त लोग धर्म अर्थादि पदार्थ को नहीं
मांगते सिर्फ प्रभु आप ही को पाने के लिए अथाक प्रयत्न करते है || २० ||
उन अविनाशी श्रेष्ठ्तम भक्तो के द्वारा प्राप्त होने लायक
इन्द्रियों के द्वारा अगम्य अत्यंत प्रिय अंतरहित परिपूर्ण भगवान का में स्तवन करता हु || २१ ||
ब्रह्मादि सर्वदेवता चतुर्वेद सभी शास्त्र चराचर जीवो और
आकृति के भेद से जिनके अत्यंत क्षुद्र स्वरुप के अंश से लिखे गए है || २२ ||
जिस तरह से प्रज्वलित अग्नि लपटे सूर्य की किरणे बार बार निकलती है
और पुनः अपनेआप लीन हो जाती है उसी प्रकार मन,बुद्धि,सर्व इन्द्रिया
और शरीर परमात्मा से प्रकट हो जाते है और पुनः उन्ही में लीन हो जाते है || २३ ||
यह भगवान वास्तव में नाही देवता है नाही असुर न मनुष्य है नाही किसी
प्राणी है, ना वो स्त्री है, ना वो पुरुष है, ना वे गुण है, ना कर्म है, सबका निषेध
हो जाने पर भी जो बच जाए वही उनका स्वरूप है, ऐसे प्रभु मेरा उद्धार करने के
लिए आविर्भूत हो जाए || २४ ||
में इस ग्राह के चँगुल से छूटकर जीवित नहीं रहना चाहता,
क्युकी इस अज्ञानी हाथी से
मिझे क्या लेना देना है ? में तो आत्मा से प्रकशित अज्ञान की निवृत्ति चाहता हु |
जिनका कभी नाश होता भगवान् की दया से जिसका उदय होता है || २५ ||
में तो मोक्ष का अभिलाषी हु,विश्व को खिलौना बनानेवाले प्रभु,अजन्मा के सर्वव्यापक
सर्वश्रेष्ठ भगवान को में प्रणाम करता हु || २६ ||
जिन्होंने भगवद्भक्ति रूप योग के द्वारा कर्मोंको भस्मित कर दिया है
वो योगीस्वरूप उसी योग के द्वारा शुद्ध किये हुए अपने ह्रदय में जिन्हे प्रकटित
देखते है उन योगेश्वर भगवान् को में नमस्कार करता हु || २७| |
जिनकी तीन शक्तिया सत्व-रज-तम असह्य है,जो इन्द्रयों के रूप में प्रतीत होते है
जिनकी इन्द्रिया विषयभोग में रहती है,ऐसे लोगो को जिनको मार्ग मिलना असंभव है
उन शरणागत रक्षक शक्तिशाली आपको नमन है || २८ ||
जिनकी अविद्या नामकी शक्तिके कार्यरत अहङ्कार से ढके हुए
अपने जिव जान नहीं पाता,उन अपरम्पार महिमावाले भगवान्
में आपकी शरण में आया हु || २९ ||
|| श्रीशुकदेवजी में कहा ||
जिन्होंने पूर्वोक्त प्रकार से भगवन की महिमा का वर्णन किया था
उस गजराज के समीप जब ब्रह्मादि देव नहीं आये सिर्फ इतना ही नहीं
अन्य कोई भी देव
नहीं आये, तब साक्षात् श्रीहरि वहा प्रकट हुये || ३० ||
गजराज को इसप्रकार दुखी देखकर और उसके द्वारा की गए इस स्तवन को सुनकर
चतुर्भुज वाले, सुदर्शनधारी, चक्रधारी भगवान् गरुड़जी की पीठपर आरूढ़ होकर
देवताओ के साथ उस स्थान पे पहुंचे जहा वह हाथी था || ३१ ||
सरोवर के भीतर महाबली गृह के द्वारा पकडे जाकर दुखी हुए उस हाथी ने
भगवान् श्रीहरि को गरुड़ पर आते देखा | भगवान् श्रीहरि को देखकर
अपनी सुंडको ऊपर उठाया जिसमे उसने कमलका फूल ले रखा था
और बोला सर्वपूज्य हरि-नारायण आपको नमस्कार है यह बोला || ३२ ||
उसे पीड़ित देखकर नारायण वहा झील पर उतर गए |
ग्राह के मुखसे उसे बचाकर
निकाला और चक्र से उस ग्राह का मुँह चीरकर ग्राह के मुख से
निकाला और चक्र से उस ग्राह का मुँह चीरकर ग्राह के मुख से
हाथी को बचा लिया || ३३ ||
|| अस्तु ||
|| अस्तु ||
श्री गजेन्द्र मोक्ष कथा | Gajendra Moksha Hindi |
Reviewed by Bijal Purohit
on
6:38 am
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