महाशिवरात्रि व्रत कथा | Mahashivratri Vrat Ktha |
महाशिवरात्रि व्रत कथा
महाशिवरात्रि व्रत कथा |
एक बार पार्वतीजी ने भगवान शिवशंकर से पूछा, ऐसा कौन सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत - पूजन है, जिससे मृत्यु लोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं ?
उत्तर में शिवजी ने पार्वतीजी को शिवरात्रि के व्रत का विधान बताकर यह कथा सुनाई -
किसी समय वाराणसी के वन में एक भील रहता था | उसका नाम गुरुद्रुह था |
वह वन्यप्राणियों का शिकार कर अपने परिवार का भरण - पोषण करता था एक बार शिवरात्रि के दिन वह शिकार करने वन में गया | उस दिन उसे दिनभर कोई शिकार नहीं मिला और रात भी हो गई |
तभी उसे वन में एक झील दिखाई दी | उसने सोचा मैं यही पेड़ पर चढ़कर शिकार की राह देखता हूं |
कोई न कोई प्राणी यहां पानी पीने आएगा | यह सोचकर वह पानी का पात्र भरकर बिल्ववृक्ष पर चढ़ गया | उस वृक्ष के निचे शिवलिंग स्थापित था | थोड़ी देर बाद वहां एक हिरनी आई |
गुरुद्रुह ने जैसे ही हिरनी को मारने के लिए धनुष पर तीर चढ़ाया तो बिल्ववृक्ष के पत्ते और जल शिवलिंग पर गिरे | इस प्रकार रात के प्रथम प्रहर में अंजाने में ही उसके द्वारा शिवलिंग की पूजा हो गई |
तभी हिरनी ने उसे देख लिया और उससे पुछा कि तुम क्या चाहते हो | वह बोला कि तुम्हें मारकर मैं अपने परिवार का पालन करूंगा |
यह सुनकर हिरनी बोली कि मेरे बच्चे मेरी राह देख रहे होंगे | मैं उन्हें अपनी बहन को सौंपकर लौट आउंगी |
हिरनी के ऐसा कहने पर शिकारी ने उसे छोड़ दिया |
थोड़ी देर बाद उस हिरनी की बहन उसे खोजती हुए झील के पास आ गई | शिकारी ने उसे देखकर पुनः अपने धनुष पर तीर चढ़ाया | इस बार भी रात के दूसरे प्रहर में बिल्ववृक्ष के पत्ते व् जल शिवलिंग पर गिरे और शिव की पूजा हो गई |
उस हिरनी ने भी अपने बच्चों को सुरक्षित स्थान पर रखकर आने को कहा | शिकारी ने उसे भी जाने दिया |
थोड़ी देर बाद वहां एक हिरन अपनी हिरनी की खोज में आया | इस बार भी वही सब हुआ और तीसरे प्रहार में भी शिवलिंग कि पूजा हो गई |
वह हिरन भी अपने बच्चों को सुरक्षित स्थान पर छोड़कर आने की बात कहकर चला गया |
जब वह तीनों हिरनी व् हिरन मिले तो प्रतिज्ञाबद्ध होने के कारण तीनों शिकारी के पास आ गए |
सबको एक साथ देखकर शिकारी बड़ा खुश हुआ और उसने फिर से अपने धनुष पर बाण चढ़ाया जिससे चौथे प्रहर में पुनः शिवलिंग की पूजा हो गई |
इस प्रकार गुरुद्रुह दिनभर भूखा - प्यासा रहकर रातभर जागता रहा और चारों प्रहर अंजाने में ही उससे शिव की पूजा हो गई और शिवरात्रि का व्रत संपन्न हो गया | जिसके प्रभाव से उसके पाप तत्काल ही भस्म हो गए |
पुण्य उदय होते ही उसने सभी हिरनों को मारने का विचार त्याग दिया |
तभी शिवलिंग से भगवान शंकर प्रकट हुए और उन्होंने गुरुद्रुह को वरदान दिया कि त्रेतायुग में भगवान राम तुम्हारे घर आएंगे और तुम्हारे साथ मित्रता करेंगे |
तुम्हें मोक्ष भी प्राप्त होगा |
इस प्रकार अंजाने में किए गए शिवरात्रि व्रत से भगवान शंकर ने शिकारी को मोक्ष प्रदान कर दिया |
|| अस्तु ||
महाशिवरात्रि व्रत कथा | Mahashivratri Vrat Ktha |
Reviewed by Bijal Purohit
on
1:12 pm
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