श्री सिद्धकुञ्जिका स्तोत्र हिंदी | Siddha Kumjika Stotram Hindi |


श्री सिद्धकुञ्जिका स्तोत्र हिंदी 

श्री सिद्धकुञ्जिका स्तोत्र हिंदी | Siddha Kumjika Stotram Hindi |
श्री सिद्धकुञ्जिका स्तोत्र हिंदी


शिवजी बोले 
देवी ! सुनो | मैं उत्तम कुंजिकास्तोत्रका उपदेश करूँगा,
 जिस मंत्रके प्रभावसे देवीका जप ( पाठ ) सफल होता है || १ ||

कवच, अर्गला, कीलक, रहस्य, सूक्त, ध्यान, न्यास यहाँतक कि अर्चन भी ( आवश्यक ) नहीं है || २ ||

केवल कुंजिकाके पाठसे दुर्गापाठका फल प्राप्त हो जाता है | 
अत्यन्त गुप्त और देवोंके लिये भी दुर्लभ है || ३ ||

हे पार्वती ! इसे स्वयोनिकी भाँति प्रयत्नपूर्वक गुप्त रखना चाहिये | 
यह उत्तम कुंजिकास्तोत्र केवल पाठके द्वारा मारण, वशीकरण,
 स्तम्भन और उच्चाटन आदि उदेश्योंको सिद्ध करता है || ४ ||

हे रुद्रस्वरूपिणी ! तुम्हें नमस्कार | हे मधु दैत्यको मरनेवाली !
 तुम्हें नमस्कार है | कैटभविनाशिनीको नमस्कार | 
महिषासुरको मारनेवाली देवी ! तुम्हें नमस्कार है || ५ ||

शुम्भका हनन करनेवाली और निशुम्भको मरनेवाली ! तुम्हें नमस्कार है |
 हे महादेवी ! मेरे जपको जाग्रत और सिद्ध करो || ६ ||

'ऐंकार' के रूपमें सृष्टिस्वरूपिणी, ' ह्रीं ' के रूपमें सृष्टिपालन करनेवाली | 
' क्लिं ' के रूपमें कामरूपिणीकी बीजरूपिणी देवी ! तुम्हें नमस्कार है || ७ ||

चामुण्डाके रूपमें चण्डविनाशिनी और ' यैकार ' के रूपमें तुम वर देनेवाली हो |
 ' विच्चे ' रूपमें तुम नित्य ही अभय देती हो | 
( इस प्रकार ' ऐं  ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ' ) तुम इस मंत्रका स्वरूप हो || ८ ||

' धां धीं धूं ' के रूपमें धूर्जटी ( शिव ) - की तुम पत्नी हो |
 ' वां वीं  वूं ' के रूपमें तुम वाणिकी अधीश्वरी हो |
 ' क्रां क्रीं क्रूं ' के रूपमें कलिकादेवी, शां शीं शूं ' के रूपमें मेरा कल्याण करो || ९ ||

' हुं हुं हुंकार ' स्वरूपिणी, ' जं जं जं ' जम्भनादिनी,
 ' भ्रां भ्रीं भ्रूं ' के रूपमें हे कल्याणकारिणी भैरवी भवानी !
तुम्हें बार - बार प्रणाम || १० ||

' अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं धिजाग्रं धिजाग्रं ' 
इन सबको तोड़ो और दीप्त करो,करो स्वाहा || ११ ||

' पां पीं पूं ' के रूपमें तुम पार्वती पूर्णा हो | 
' खां खीं खूं ' के रूपमें तुम खेचरी ( आकाशचारिणी ) अथवा खेचरी मुद्रा हो |
 ' सां सीं सूं ' स्वरूपिणी 
सप्तशती देवीके मन्त्रोंको मेरे लिए सिद्ध करो जागृत करो |  || १२ || 

यह कुञ्जिकास्तोत्र मन्त्रको जागृत करनेके लिए है |
 इसे भक्तिहीन मनुष्यो को देना नहीं चाहिए | 
हे पार्वती इसे गुप्त रखो |
हे देवी जो बिना कुञ्जिका सप्तशती का पाठ करता है 
उसे उसी प्रकार सिद्धि नहीं,
मिलती जिस प्रकार वन में रोना निरर्थक होता है || १३ || 

|| इस प्रकार रुद्रयामल के गौरीतंत्र में स्थित शिवपार्वती संवाद से प्रकट हुआ
 सिद्धकुंजिकस्तोत्र सम्पूर्ण हुआ || 




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