एकमुखी हनुमान कवच | Ekmukhi Hanuman Kavach Hindi |
एकमुखी हनुमान कवच
|| ईश्वर कहते है ||
ईश्वर ने कहा - एक बार कर्पूर के समान अत्यंत शुभ्र वर्णमयी लोक कल्याणी सुखासन में बैठे शिवजी से पार्वतीजी ने पूछा
|| पार्वतीजी ने पूछ ||
पार्वतीजी ने पूछा - हे भगवान ! हे देव देवेश ! हे जगत के प्रभु ! युद्ध के संकट वाले समय, भूत - प्रेत पीड़ित हो जाने पर दुःख के भरमार हो जाने पर और शोकादि के बढ़ जाने पर सन्तप्त हृदयों की रक्षा किस प्रकार से होगी |
|| महादेवजी कहते है ||
महादेव ने बताया - सुनो देवी ! लोक के कल्याणार्थ भगवान राम ने विभीषण को जो -
वायु पुत्र कपिनाथ अर्थात हनुमान का कवच बताया था वो अत्यन्त गोपनीय है |
इस विशेष कवच को हे सुन्दरी श्रवण करो |
|| ध्यान ||
उदयकाल के सूर्य के समान कांति वाले, असुरों के गर्व का नाश करने वाले देवतादि प्रमुख उत्तम कीर्तिमयी, पूर्ण तेजस्वी, सुग्रीवादि वानर सहित, ब्रह्मतत्व को प्रत्यक्ष करने वाले, रक्त व अरुण नेत्रमयी, पीताम्बर से अलंकृत हनुमान जी का ध्यान करना चाहिये |
उदयकाल के करोड़ों सूर्य समान कांतिमयी, वीरासन में शोभित अत्यन्त रुचि से मौंजी तथा यज्ञोपवीत को धारण करने वाले, कुण्डलों से सुशोभित, भक्तों की बाँछा पूर्ण करनें में चतुर, वेदों के शब्द से अपार हर्षित होने वाले, वानरों के प्रमुख एवं अत्यधिक विस्तृत समुद्र को अचानक लांघ जाने वाले हनुमान जी का ध्यान करना चाहिए |
जिसका शरीर वज्र के समान कठोर है | केश पीले हैं | जिन्होंने स्वर्ण कुण्डल धारण किये हुए हैं |
जिनका दाहिना हाथ ऊपर को उठा हुआ है | स्फटिक के समान कांतिमयी, स्वर्ण की भाँत्ति देदीप्यमान,
दो भुजामयी, जिन्होंने हाथों की अंजलि बना रखी है | ऐसे हनुमान जी का ध्यान करता हूँ |
|| हनुमान मंत्र ||
पूर्व में हनुमान, दक्षिण में पवनात्मज, पश्चिम में रक्षोघ्न, उत्तर में सागर पारग, ऊपर से केसरी नन्दन, नीचे से विष्णु भक्त, मध्य में पावनि, अवान्तर दिशाओं सीता शोक विनाशक तथा समस्त मुसीबतों में लंका विदाहक मेरी रक्षा करें |
सचिव सुग्रीव मेरे मस्तक की, वायुनन्दन भाल की, महावीर भौंहो के मध्य की, छायापहारि नेत्रों की, प्लवगेश्वर कपोलों की,रामकिंकर कर्णमूल की, अंजनीसुत नासाग्र की, हरिश्वर सुख की, रुद्रप्रिय वाणी की तथा पिंगल लोचन मेरी जीभ की सर्वदा रक्षा करें |
फाल्गुनेष्ट मेरे दाँतों की, दैत्यापादहा चिबुक की, दैत्यादी कंठ की, सुरार्चित मेरे कन्धों की, महातेजा भुजाओं की, चरणायुध हाथों की, नखायुध नखों की, कपीश्वर कोख की, मुद्रीपहारी वक्ष की, भुजायुध अगल - बगल की, लंकाविभंजन मेरी पीठ की सदा रक्षा करें |
रामदूत नाभि की, निलात्मज कमर की, महाप्राण गुदा की, शिवप्रिय लिंग की, लंका प्रासाद भंजन जानु एवं उरु की, कपिश्रेष्ठ जंघा की, महाबल गुल्फों की, अचलोद्धारक पैरों की, भाष्कर सन्निया अंगो की, अमित सत्ताढव पांव वाली अंगुलियों की सर्वदा रक्षा करें |
|| अस्तु ||
एकमुखी हनुमान कवच | Ekmukhi Hanuman Kavach Hindi |
Reviewed by Bijal Purohit
on
6:17 am
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