गणेश चतुर्थी व्रत कथा | Ganesh Chaturthi Vrat Katha |
गणेश चतुर्थी व्रत कथा
गणेश चतुर्थी व्रत कथा की विधि
सब से पहले स्नान आदि करके पवित्र हो जाएं | जिस स्थल पर प्रतिमा विराजमान करनी है, उसे साफ करें | गंगाजल डाल कर उस जगह को पवित्र करे भगवान् गणेश की प्रतिमा को चौकी पर पीले रंग का कपड़ा बिछाकर विराजमान करें | धूप, दिप और अगरबत्ती जलाएं | ध्यान रखें की जब गणेश जी आपके घर में रहेंगे तब तक अखंड दीपक जलाकर रखें | गणेश जी के मस्तक पर कुमकुम का तिलक लगाएं | फिर चावल, दुर्वा और पुष्प अर्पित करें |
गणेश जी का स्मरण कर गणेश स्तुति और गणेश चालिसा का पाठ करें | इसके बाद ॐ गं गणपते नमः का जप करें | भगवान गणेश की आरती करें | आरती के बाद गणेश जी को फल या मिठाई आदि का भोग लगाएं | संभव हो तो मोदक का भोग जरूर लगाएं | भगवान गणेश को मोदक प्रिय हैं | रात्रि जागरण करें | गणेश जी को जब तक अपने घर में रखें, उन्हें अकेला न छोड़ें | कोई न कोई व्यक्ति हर समय गणेश जी की प्रतिमा के पास रहे |
गणेश चतुर्थी व्रत कथा
एक बार महादेवजी पार्वती सहित नर्मदा के तट पर गए | वहाँ एक सुंदर स्थान पर पार्वतीजी ने महादेवजी के साथ चौपड़ खेलने की इच्छा व्यक्त की | तब शिवजी ने कहा की हमारी हार - जीत का साक्षी कौन होगा | पार्वती ने तत्काल वहाँ की घास तिनके बटोरकर एक पुतला बनाया और उसमें प्राण प्रतिष्ठा करके उससे कहा - पुत्र ! हम चौपड़ खेलना चाहते हैं, किन्तु यहाँ हार-जीत का साक्षी कोई नहीं है | अतः खेल के अन्त में तुम हमारी हार-जीत के साक्षी होकर बताना कि हममें से कौन जीता - कौन हारा ?
खेल आरंभ हुआ | दैवयोग से तीनों बार पार्वतीजी ही जीतीं | जब अंत में बालक से हार-जीत का निर्णय कराया गया तो उसने महादेवजी को विजय बताया | परिणामतः पार्वतीजी ने क्रुद्ध होकर उसे एक पाँव से लंगड़ा होने और वहाँ के कीचड़ में पड़ा रहकर दुःख भोगने का शाप दे दिया |
बालक ने विनम्रतापूर्वक कहा - माँ ! मुझसे अज्ञानवश ऐसा हो गया है | मैंने किसी कुटिलता या द्वेष के कारण ऐसा नहीं किया | मुझे क्षमा करें तथा शाप से मुक्ति का उपाय बताएँ | तब ममतारूपी माँ को उस पर दया आ गई और वे बोली, यहाँ नाग-कन्याएँ गणेश-पूजन करने आएँगी | उनके उपदेश से तुम गणेश व्रत करके मुझे प्राप्त करोगे | इतना कहकर वे कैलाश पर्वत चली गईं |
एक वर्ष बाद वहाँ श्रावण में नाग-कन्याएँ गणेश पूजन के लिए आईं | नाग-कन्याओं ने गणेश व्रत करके उस बालक को भी व्रत की विधि बताई | तत्पश्चात बालक ने १२ दिन तक श्रीगणेशजी का व्रत किया | तब गणेशजी ने उसे दर्शन देकर कहा - मैं तुम्हारे व्रत से प्रसन्न हूँ | मनोवांछित वर माँगो | बालक बोला - भगवान मेरे पाँव में इतनी शक्ति दे दो कि मैं कैलाश पर्वत पर अपने माता - पिता के पास पहुंच सकूं और वे मुझ पर प्रसन्न हो जाएँ |
गणेशजी तथास्तु कहकर अंतर्धान हो गए | बालक भगवान शिव के चरणों में पहुँच गया | शिवजी ने उससे वहाँ तक पहुँचने के साधक के बारे में पूछा |
तब बालक ने सारी कथा शिवजी को सुना दी | उधर उसी दिन से अप्रसन्न होकर पार्वती शिवजी से भी विमुख हो गई थीं | तदुपरांत भगवन् शंकर ने भी बालक की तरह २१ दिन पर्यन्त श्री गणेश का व्रत किया | जिसके प्रभाव से पार्वती के मन में स्वयं महादेवजी से मिलने की इच्छा जाग्रत हुई |
वे शीघ्र ही कैलाश पर्वत पर आ पहुँची | वहाँ पहुँचकर पार्वतीजी ने शंकरजी से पूछा भगवन् ! आपने ऐसा कौन सा उपाय किया जिसके फलस्वरूप मैं आपके पास भागी-भागी आ गई हूँ | शिवजी ने गणेश व्रत का इतिहास उनको सुनाया |
तब पार्वतीजी ने अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा से २१ दिन पर्यन्त २१-२१ की संख्या में दूर्वा, पुष्प तथा लड्डुओं से गणेशजी का पूजन किया | २१ वे दिन कार्तिकेय स्वयं ही पार्वतीजी से आ मिले | उन्होंने भी माँ के मुख से इस व्रत का महात्म्य सुनकर व्रत किया |
|| अस्तु ||
गणेश चतुर्थी व्रत कथा | Ganesh Chaturthi Vrat Katha |
Reviewed by Bijal Purohit
on
7:33 am
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