श्री लक्ष्मी सूक्तम् | Shree Lakshmi Suktam in Hindi |
श्री लक्ष्मी सूक्तम्
श्री लक्ष्मी सूक्तम् |
हे कमलवासिनी, कमल के समान हाथों वाली, अत्यंत स्वच्छ तथा सुगन्धित, पुष्प माला धारण करने से सुशोभित, हे विष्णुवल्लभे, सबके मनोभावों की ज्ञाता, हे त्रिलोकी को ऐश्वर्य तथा आनन्द प्रदान करने वाली देवी ! आप मुझ पर प्रसन्न हो जाओ || १ ||
अग्निदेव हमें धन दे, वायु देव हमें धन दे,इसी प्रकार वसु, इन्द्र, बृहस्पति, वरुण, अश्विनी कुमार आदि समस्त देवता हमारे घर में निवास करते हुए हमें धन दें || २ ||
हे गरुड़ देव ! आप सोमरस पिएँ | इन्द्र देव आप भी सोमरस पिएँ | सोमरस पीने वाले कुबेर आदि समस्त देव मुझे भी सोमरस दें और सोमरस को पीने वाले सदा हमारे घर में निवास करें, जिससे मैं भी ऐश्वर्यवान् बन जाऊँ || ३ ||
जो इस सूक्त का पाठ करते हैं उन भक्तों को एवं जिन्होंने पुण्य किए हैं ऐसे भक्तों को केवल पाठ मात्र करने से क्रोध, मद-मोह-लोभ और अशुभ मति आदि सताते नहीं है || ४ ||
हे कमल के समान मुखवाली, हे कमल के समान जांधों वाली ! हे कमलनयने ! हे कमल में निवास करने वाली, हे पद्माक्षि ! आप मेरे यहाँ सदा निवास करो जिससे की मैं सुख को प्राप्त करता रहूँ || ५ ||
मैं विष्णु पत्नी, क्षमारूपिणी, माधवी, माधवप्रिय, विष्णु भगवान् की प्रिया सखी, दिव्या गुणसम्पन्ना, सच्चिदानन्द परमेश्वर की वल्लभा को प्रणाम करता हूँ || ६ ||
हम महालक्ष्मी जी की जिज्ञासा करते हैं और विष्णुपति का ध्यान करते हैं | अतएव श्री महालक्ष्मी जी हमें शुभ कर्मों में प्रेरित करती रहे | जिससे कि वे हमारे घर में सदा बनी रहें || ७ ||
हे कमल के समान मुखवाली ! हे कमलवाली, कमल के पत्तों वाली, हे कमलों से प्रेम करने वाली ! हे कमल के समान विशाल नेत्रों वाली, सम्पूर्ण संसार की प्रिय ! संसार के मन के अनुकूल चलने वाली ! हे महालक्ष्मी ! आप अपने चरण कमल को मेरे घर में रखों || ८ ||
आनन्द, कर्दम, श्रीद और चिक्लीत - ये चार लक्ष्मी पुत्र प्रसिद्ध हैं और श्रीसूक्त के ऋषि भी हैं | अतः वे मुझे भी श्री प्रदान करें || ९ ||
हे भगवती लक्ष्मी आप की कृपा से मेरे ऋण तथा रोगादि बाधाएँ, दारिद्रय, पाप, अकाल मृत्यु, भय, शोक एवं समस्त मानसिक सन्ताप सदा के लिए नष्ट हों जिससे कि मैं सर्वदा सुख भोगवूं || १० ||
इस लक्ष्मी सूक्त का पाठ करने से लक्ष्मी, तेज, आयु, आरोग्य आदि सभी तथा पवित्रता एवं गौरवादि वृद्धि को प्राप्त होते हैं | धन, धान्य, पशुधन, बहुपुत्र, लाभ तथा सौ वर्षों की आयु इसके जाप मात्र से प्राप्त होती है || ११ ||
|| अस्तु ||
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