श्रीसूक्तम् | Shree suktam |

 

श्रीसूक्तम्

श्रीसूक्तम् 

हे अग्निदेव, तपे हुए सोने के समान वर्णवाली, तेज स्वरूपा, हिरण की गति वाली, सोने के जैसी चमकदार, चन्द्रमा की तरह सबको शांति और आनंद प्रदान करने वाली, स्वर्ण समान तेजोमय शरीर धारण करने वाली, ज्योतिरूपा लक्ष्मी देवी का मेरे यहां आवाहन कीजिए | 

हे वेद से उत्पन्न अगनिदेवी ! अन्यत्र न जाने वाली उत्तम लक्षण वाली लक्ष्मी देवी को मेरे यहां आग्रहपूर्वक बुलाइये ताकि मैं यथेच्छ स्वर्ण आदि रत्न, गौ, घोड़े आदि उत्तम पशुधन, निवास, खेती आदि के लिए पर्याप्त भुमिरूपी धन और सहयोगी मनुष्यों पत्नी, पुत्र, पौत्र आदि का परिवार  वरण करूं | 

सुन्दर - सुन्दर घोड़ों से जुते दिव्य रथ क्र बीच सुन्दर आसन पर विराजमान, हाथियों की गर्जना सुनकर प्रसन्न होने वाली, समस्त प्राणियों को प्रकाशित करने वाली लक्ष्मी देवी का मैं आवाहन करता हूं |वह लक्ष्मी कृपा करके मेरे यहां सदा निवास करें | 

मन और वचन के द्वारा न जानने योग्य, हमेशा मन्द - मन्द मुस्कुराने वाली, अनेक मणिमाणिक रत्नों के हारों व मालाओं से शोभायमान, भक्तों पर अकारण दया करुणा व स्नेह बरसाने वाली, तेज प्रभा से परिपूर्ण, भक्तों की इच्छाओं को पूरी करने वाली, खिले हुए कमल के आसन पर विराजमान, कमल के समान कोमल और प्रसन्नतावर्धक कान्ति वाली - लक्ष्मी देवी का मैं आवाहन करता हूं | 

चन्द्रमा के समान शांति शीतलता और आनन्द बढ़ाने वाली, तेजोमयी ज्योति स्वरूपा, स्वर्गादि लोकों में इन्द्रादि देवों से पूजित व सेवित,अत्यन्त उदार स्वभाववाली, अनन्त धन रत्नादि मनोरथों को पूर्ण करने वाली, कमल के मध्य रहने वाली, कमल के वर्ण वाली लक्ष्मी देवी की शरण में हूं | दया करके मेरी दरिद्रता का नाश करें | मैं आपका वरण करता हूं | 

हे सूर्य के समान तेजस्वी विग्रह वाली लक्ष्मी ! तप के प्रभाव से फूल के बिना फल देने वाले बिल्व वृक्ष की जन्मदात्री देवी, मैं उस बेल के पेड़ के फल को आपको अर्पित करता हूं | आप मेरे हृदय के अंदर और बहार के आरिष्ट रोग, द्वेष। दुःखादि जन्य - दरिद्रता, असमर्थता को कृपा करके दूर करिये | 

हे लक्ष्मी ! मुझे उत्तम यश रत्न धन आदि के साथ देवताओं के सखा कुबेर और उनके मित्र मणिभद्र प्राप्त हों | मैंने इस राष्ट्र में जन्म लिया है | मुझे इसके गौरव के अनुरूप यश और समृद्धि प्रदान करें | 

मैं भूख - प्यास आदि शारीरिक मलिनता बढ़ाने वाली लक्ष्मी की बड़ी बहन अलक्ष्मी यानि की दरिद्रता का सदा के लिए विनाश करता हूं | हे लक्ष्मी ! तुम मेरे घर से सभी प्रकार की असमृद्धि, दुःख, दैन्य और अभाव को दूर भगाओ | 

हे अगनिदेवी ! मैं सुगन्धित द्रव्यों के अर्पण से प्रसन्न करने योग्य, किसी भी शक्ति से न जीते जाने वाली, सदा धन - धान्यादि देवक अपने शरणागत भक्तों की इच्छा पूर्ण करने वाली, गौ-अश्व आदि पशुधन को बढ़ाने वाली और संसार के समस्त प्राणियों की स्वामिनी लक्ष्मी देवी का मैं आवाहन करता हूं | 

हे देवी ! मुझे संकल्प - सिद्धि और वाणी की सत्यता प्राप्त हो | पशुधन और उत्तम भोज्य सामग्री मिलती रहे | इनके दान - पुण्य और यज्ञ आदि सत्कर्मों से मेरे घर की शोभा बढ़ाती रहे ऐसी कृपा कीजिए | 

देवहूति के पति कर्दम नामक ऋषि से लक्ष्मी पुत्रों वाली हुई-यह संसार इस रूप में लक्ष्मी की प्रजा है | हे कर्दम ऋषि आप मेरे घर निवास करें श्री मेरे घर में निवास करें और कमल पुष्पों की माला से सुशोभित स्वयं लक्ष्मी भी मेरे गृह में निवास करें | 

हे जल देवता ! आप उचित जल वर्षा और सेचन से सुन्दर- सुन्दर उपभोग्य पदार्थों को उत्पन्न करें | हे लक्ष्मीदेवी के चिक्लीत नामक पुत्र, आप मेरे घर निवास कीजिए और अपनी माता को भी मेरे घर निवास कराइये |  

हे अग्ने ! अत्यन्त दयालु स्वाभाव वाली, दिक्पालों के हाथियों द्वारा अपनी सूडों में उठाये गए कलशों के जल से अभिषिक्त होने वाली, सभी जड़-चेतन, जीवों ( जीव सृष्टि और सभी पदार्थों का पोषण करने वाली यानी पुष्टि करनेवाली ) पीत-गौर अंगों वाली, दिव्य कमलों की माला धारण करने वाली चन्द्रमा के समान निर्मल कान्ति प्रदान करने वाली,रत्नजडित स्वर्ण आभूषणों को धारण करने वाली लक्ष्मी देवी का मेरे यहां सादर आवाहन कीजिए | 

हे अग्निदेव ! अकारण दया करने वाली,दुष्टों को दण्ड देने वाली, सूर्य के समान सभी प्राणियों को जन्म देकर उन्हें तेजस्वी व शक्तिशाली बनाने वाली और अनेक प्रकार के रत्नों से जड़े हुए स्वर्ण हारों को पहनने वाली लक्ष्मी का सादर आवाहन कीजिए | 

हे देव ! उस देवी का मेरे यहां आवाहन कीजिए, जो हमें छोड़कर न जाएं | जो सदा ही मेरे घर निवास करें | जिनके आने से मैं सोना, चांदी, रत्न, बहुतसा धन, गौ-घोड़े आदि पशु,सेवा करने वाली उत्तम दासियां और सेवक, सहयोगी पुरुषों अर्थात् उत्तम पुत्र-पौत्रादि को प्राप्त करूं | 

जो मनुष्य लक्ष्मी अर्थात् धन-धान्य का अभिलाषी हो, वह पवित्र भाव से संयमपूर्वक अपने मन और इन्द्रियों पर नियंत्रण रखकर एकाग्र चित्त से प्रतिदिन अग्निदेव को सम्भोधित कर नित्य इन पन्द्रह ऋचाओं वाले सूक्त के मंत्रो से श्रद्धापूर्वक हवन कुण्ड में आहुति डाले या इनके अर्थों को हृदय में धारण कर इसका निरन्तर पाठ या जाप करें | 

विशेष धन-सम्पत्ति पाने की इच्छा वाले श्रद्धालु को यथाशक्ति दुर्गा सप्तशती के माध्यम चरित्र का पाठ भी महालक्ष्मी की प्रसन्नता के लिए करना चाहिए | 


|| अस्तु || 

श्रीसूक्तम् | Shree suktam | श्रीसूक्तम् |  Shree suktam | Reviewed by Bijal Purohit on 10:25 am Rating: 5

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