अगस्त्य कृत लक्ष्मी स्तोत्र | Agastya krit Lakshmi Stotram |
अगस्त्य कृत लक्ष्मी स्तोत्र
अगस्त्य कृत लक्ष्मी स्तोत्र |
अगस्त्य मुनि स्तुति करते हुए कहने लगे, कमल के समान विशाल नेत्रोंवाली मातः कमले ! मैं आपको प्रणाम करता हूँ |
आप भगवान् विष्णु के हृदयकमल में निवास करने वाली तथा सम्पूर्ण विश्वकी जननी हैं | कमलके कोमल गर्भके सदृश गौर वर्णवाली क्षीरसागरकी पुत्री महालक्ष्मी, आप अपनी शरण में आये हुए प्रणतजनों का पालन करने वाली हैं |
आप सदा मुझपर प्रसन्न हों | मदनकी एकमात्र जननी रुक्मणीरूपधारिणी लक्ष्मी ! आप भगवान् विष्णु के वैकुण्ठधाममें " श्री " नाम से प्रसिद्ध हैं | चन्द्रमा के समान मनोहर मुखवाली देवी, आप ही चन्द्रमा में चाँदनी हैं, सूर्य में प्रभा हैं और तीनों लोकों में आप ही प्रभासित होती हैं |
प्रणतजनों को आश्रय देनेवाली माता लक्ष्मी, आप सदा मुझपर प्रसन्न हों | आप ही अग्निमें दाहिका शक्ति हैं | ब्रह्माजी आपकी ही सहायतासे विविध प्रकारके जगत् की रचना करते हैं | सम्पूर्ण विश्व का भरण - पोषण करनेवाले भगवान् विष्णु भी आपके ही भरोसे सबका पालन करते है |
शरणमें आकर चरणमें मस्तक झुकानेवाले पुरुषोंकी निरन्तर रक्षा करनेवाली माता महालक्ष्मी, आप मुझपर प्रसन्न हों | निर्मल स्वरूपवाली देवि, जिनको आपने त्याग दिया है, उन्हीका भगवान् रूद्र संहार करते हैं | वास्तवमें आप ही जगत् का पालन, संहार और सृष्टि करनेवाली हैं | आप ही कार्य - कारणरूप जगत् हैं | निर्मलस्वरूपा लक्ष्मी, आपको प्राप्त करके ही भगवान् श्रीहरि सबके पूज्य बन गये |
माँ, आप प्रणतजनोंका सदैव पालन करनेवाली हैं, मुझपर प्रसन्न हों | शुभे ! जिस पुरुषपर आपका करुणापूर्ण कटाक्ष पात होता है, संसारमें एकमात्र वही शूरवीर,विद्वान्, धन्य, मान्य,कुलीन, शीलवान, अनेक कलाओं का ज्ञाता और परम पवित्र माना जाता है |
देवि,आप जिस किसी पुरुष, हाथी, घोडा, नपुंसक, तिनका, सरोवर, देवमंदिर, गृह,अन्न,रत्न, पशु-पक्षी, शय्या और भूमिमें क्षणभर भी निवास करती हैं, समस्त संसारमें केवल वही शोभासम्पन्न होता है, दूसरा नहीं | हे श्रीविष्णुपत्नि ! हे कमले ! हे कमलालये ! हे माता लक्ष्मी !
आपने जिसका स्पर्श किया है, वह पवित्र हो जाता है और आपने जिसे त्याग दिया है, वही सब इस जगत् में अपवित्र है | जहाँ आपका नाम है, वहीं उत्तम मङ्गल है | जो लक्ष्मी, श्री, कमला, कमलालया, पद्मा, रमा,नलिनयुग्मकरा, माँ, क्षीरोदजा, अमृतकुम्भकरा, इरा और विष्णुप्रिया इन नामोंका सदा जप करते हैं उनके लिये कहाँ दुःख है |
इस स्तुतिको सुनकर प्रसन्न होकर लक्ष्मीजी ने कहा मुने ! " एवमस्तु " तुमने जो कुछ कहा है, वह सब पूरा होगा | इस स्तोत्रका पाठ मेरे सामिप्य की प्राप्ति करनेवाला होगा |
|| अस्तु ||
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