अनुष्ठान की विधि | Anushthan ki Vidhi |
अनुष्ठान की विधि
अनुष्ठान की विधि |
मंत्र-तंत्र-यन्त्र-पूजा-पाठ-साधना-सिद्धि इस सभी विषयो का मूल एक मात्र अनुष्ठान विधान है |
क्या होता है अनुष्ठान ? किसे कहते है अनुष्ठान ? तो जानिये आज -
अनुष्ठान का अर्थ
किसी भी मंत्र आदि साधना में सभी नियमो का पालन किया जाये जैसे ब्रह्ममुहूर्त में उठना-संध्यावंदन आदि करके किसी मंत्र या जो भी साधना करते है उसका एक चोक्कस समय पर ही आरमभ करना चाहे कुछ भी हो जाए, साधना के दौरान उसी समय को लेकर चलना, सिर्फ फलाहार कर के साधना करना, या एक समय ही खाना खाना, ब्रह्मचर्य का पालन करना, अधिक मात्रा में ना बोलना या मौनव्रत धारण करना, रात को एक निर्धारित समय पर सोकर प्रातः काल निर्धारित समय पर जगना इत्यादि नियमो का कठोरता पूर्वक पालन करने को ही अनुष्ठान कहते है |
अनुष्ठान विधान
अगर आप स्वयं अनुष्ठान करे तो उत्तम माना गया है | अपने गुरु के द्वारा मंत्र या साधना विधान मिले तो उत्तमोत्तम |
और विद्वान् ज्ञानी ब्राह्मण के द्वारा मंत्र मिले तो उत्तम समझना चाहिये |
अनुष्ठान करने के स्थान
अनुष्ठान करने में स्थान का बहुत ही महत्व है क्युकी जिस स्थान पर आप अनुष्ठान करते है उस स्थान का भी प्रभाव हमारे अनुष्ठान पर और हम पर काफी रहता है | कुछ स्थान में निचे दे रहा हु |
पुण्यपवित्रक्षेत्र-पवित्र नदी का तट-गुफा-सिद्धपीठ-संगम तीर्थ-बागबगीचा-तुलसी वन या जहा तुलसी का पौधा हो वो जगह-पहाड़-गौशाला-देवालय-शिवालय-अश्वत्थ यानी पीपल के पेड़ के नीचे-आंवले के वृक्ष के नीचे-औदुम्बर के नीचे-बिल्ववृक्ष के नीचे - श्रीपर्णी के नीचे इन सभी स्थानों में अगर अनुकूल तरीके से अनुष्ठान ना हो सके तब अपने घर में अनुष्ठान करना चाहये |
अनुष्ठान समय के साक्षी देवता
सूर्यनारायण-चन्द्रनारायण-गुरु-दीपक-अग्निनारायण-तीर्थजल-ब्राह्मण-गौ माता इन साक्षी देवताओ के समीप मंत्रजाप करने से शीघ्र सफलता प्राप्त हो जाती है |
अनुष्ठान के समय क्या भक्षण करना चाहिये ?
यह एक ऐसा प्रश्न है जो सभी के मन में भिन्न भिन्न स्वरुप से है या अपने मतानुसार है | किन्तु शास्त्रोक्त रूप से कहा है ,अनुष्ठान के समय हो सके तो केवल फलाहार करना चाहिए | या गाय का दूध, दही, घी, सफ़ेद तिल, आंवले, नारियल, नारियल पानी, या सभी फलो को ग्रहण करना चाहिए | किन्तु याद रखे अगर शरीर अस्वस्थ है तो उसी हिसाब से भोजन ले |
अनुष्ठान के समय कांस्य पात्र में ना खाये,अनुष्ठान में प्रतिदिन आंवले के जल से स्नान करे,मंत्र जाप करते समय अन्य शब्दों का उच्चारण नहीं करना चाहिए,मंत्र जाप करते समय (माला जपते समय) शरीर के अन्य अंगो को स्पर्श नहीं करना चाहिये |
अनुष्ठान के पांच अंग
जाप-होम-तर्पण-अभिषेक-ब्रह्मभोजन
लेकिन स्त्रीओ को इन पांच अंगो का पालन करना जरुरी नहीं है | उनको तो केवल जाप से ही सिद्धि मिल जाती है |
अगर मंत्र सिद्धि को प्राप्त करनी है तो इन बारह नियमो को अनुसरे
भूमिशयन
ब्रह्मचर्य
मौन
गुरुसेवन
त्रिकाल स्नान
पापकृत्य
नित्यपूजा
नित्यदान
देवी-देवताओ की स्तुति
नैमित्तिकपूजा
इष्ट में विश्वास
जाप निष्ठा
सबसे महत्वपूर्ण नियम
आप जो भी मंत्र साधना या नया कोई भी साधना करे वो सदैव गुप्त रखनी चाहिये |
शास्त्रोक्त वचन है - "गोपनीयं गोपनीयं गोपनीयं प्रयत्नतः |
त्वयापि गोपितव्यं हि न देयं यस्य कस्यचित ||
जिस प्रकार से स्वादिष्ट भोजन को देखकर हमारे मन में एक लालसा पैदा होती है की यह सिर्फ में ही खाऊंगा अन्य को नहीं दूंगा वैसे ही साधना के फल को अकेले ही प्राप्त करना है |
अन्य एक जरुरी बात
साधना के समय कभी भी क्रोध नहीं करना चाहिये वरना सम्पूर्ण साधना निष्फल मानी जाती है |
"रोषं करोति दोषः"
क्रोध से दोष का जन्म होता है | क्रोध से ही सर्वस्व का नाश होता है | क्रोध से अनुष्ठान की शक्ति दुर्बल हो जाती है |
|| अस्तु ||
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