श्री दुर्गा सप्तश्लोकी | Shree Durga Saptshloki |
श्री दुर्गा सप्तश्लोकी
दुर्गासप्तश्लोकी कथा
एक बार शिवजी बोले हे देवी पार्वती इस कलिकाल में कोई ऐसा उपाय बताओ की जिसको करने से मनुष्य ऊपर आप शीघ्र ही प्रसन्न हो सकती हो और उसी उपाय के माध्यम से आप भक्तों की मनोकमना भी सिद्ध कर सकती हो |
तब माँ दुर्गा ने यही सप्तश्लोकी का विधान भगवान् महादेव को बताया था |
कितने पाठ करने चाहिए ?
वैसे तो इस स्तोत्र का आप चाहो तो प्रतिदिन नौ पाठ करे तो शीघ्र ही कामना पूर्ण होती है किन्तु आप प्रतिदिन कर अपने मनोरथ सफल कर सकते हो | चारो नवरात्र में आप इस स्तोत्र का प्रतिदिन नौ पाठ या १०८ पाठ करे संकल्प करके | माँ दुर्गा की पूर्ण कृपा भी प्राप्त होगी और अवश्य सभी मनो कामना पूर्ण होगी |
जरुरी बात : अगर आप इस स्तोत्र का एक से अधिक बार पाठ करते हो तो आपको इसका विनियोग सिर्फ एक ही बार करना है एक दिन में | किन्तु दूसरे दिन वैसे ही फिर कर पाठ का आरम्भ करे |
श्री दुर्गा सप्तश्लोकी
विनियोग :
ॐ अस्य श्री दुर्गासप्तश्लोकीस्तोत्रमंत्रस्य नारायण ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्री महाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो देवताः, श्री दुर्गाप्रीत्यर्थं सप्तश्लोकी
दुर्गा पाठे विनियोगः
विनियोग का अर्थ है
इस दुर्गासप्तश्लोकी स्तोत्र के ऋषि भगवान् विष्णु है,श्लोक के अनुष्टुप छंद है, श्री महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती इस स्तोत्र के मुख्या देवता है और माँ दुर्गा की प्रीति अर्थ के लिये इस तोत्र का हम विनियोग करते है |
ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा |
बलादाकृष्य महामाया प्रयच्छति || १ ||
भगवती देवी बड़े बड़े ज्ञानिओ के चित्त को भी मोहमाया में डाल देती है और ज्ञानीओ के चित्त को अपनी तरफ खींच लेती है || 1 ||
दुर्गे स्मृता हरसीभीतिमशेष जन्तोः
स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |
दारिद्र्य दुःख भय हारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता || २ ||
हे माँ दुर्गा आपके समरण मात्र से ही आप प्रसन्न होकर समस्तप्राणियो के दुःख-दारिद्र का विनाश कर देती हो,
साथ ही आप भक्तो को स्वास्थ्य प्रदान करती हो परमकल्याणमयी बुद्धिप्रदान करती हो |
हे दुःख-दारिद्रता-भय को हरनेवाली सिवा कौन है, जिसका चित्त निरंतर लिये दयाद्र अर्थात दयालु रहता है || 2 ||
सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके |
शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते || ३ ||
हे नारायणी आप सभी मंगलो को भी प्रदान करनेवाली मंगलमयी हो, कल्याण दायिनी शिवा हो सभी पुरुषार्थो को सिद्धकरनेवाली हो, हे शरणागत वतस्ला त्रिनेत्रा पार्वती आप ही हो || 3 ||
शरणागतदीनार्त परित्राण परायणे |
सर्वस्यार्ति हरे देवी नारायणी नमोस्तुत्ते || ४ ||
शरणागत हुयी तीनो एवं आर्तजनों की रक्षा में निरत और सबकी पीड़ा को हरनेवाली करनेवाली नारायणी में तुम्हे नमस्कार करता हु || 4 ||
सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते |
भयेप्यस्त्राहि नो देवी दुर्गे देवी नमोस्तुते || ५ ||
सर्व स्वरूपा सर्वेश्वरी सभी शक्तियों से संपन्न दिव्या माँ भगवती भगवती स्वरूपा हे दुर्गा देवी सभी प्रकार के भयो से हमारी रक्षा करो हम आपको नमस्कार करते है || 5 ||
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान सकलानभीष्टान |
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति || ६ ||
हे देवी तुम प्रसन्न होकर सभी रोगो को विनाश कर देती हो, जो मनुष्य आपकी शरण में जो आता है वो दुसरो को भी आश्रय देते है और वो भी सभी बाधा बंधनो से मुक्त हो जाते है || 6 ||
सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्या खिलेश्वरी |
एवमेवत्वयाकार्य अस्मद्वैरी विनाशनं || ७ ||
हे दुर्गा आप इसी प्रकार तीनो लोको की बाधाओं को शांत करो और हमारे सभी शत्रुओ विनाश करो || 7 ||
इस प्रकार से यह दुर्गा के सप्तश्लोकी पाठ सम्पूर्ण हुये ||
यह बहुत ही चमत्कारिक श्लोक है और सम्पूर्णदुर्गासप्तशती का सार है |
इन सभी श्लोको अपना अपना एक अल्लाह माहात्म्य है ||
|| अस्तु ||
कोई टिप्पणी नहीं: