अधिक मास शुक्ल एकादशी व्रत कथा | Adhik maas ekadashi vrat katha |
अधिक मास शुक्ल एकादशी व्रत कथा
पुलस्त्य मुनि ने यह कथा नारदजी को बताई थी |
कृतवीर्य के पुत्र सहस्त्रार्जुने ने रावण को कैदखाने में डालदिया था |
वो देखकर रावण के पिता पुलस्त्य ने सहस्त्रार्जुन को प्रार्थना कर रावण को कैदखाने में से छुड़ाया था |
वो देखकर नारदजी आश्चर्य चकित हो गए यह कैसे संभव है ?
रावण तो विद्वान है उसने तो इन्द्रादि देवताओ को पराजित किया था |
रावण तो युद्ध करने में कुशल है तो सहस्त्रार्जुन ने रावण को कैसे बंधन में दाल दिया ? बंधी बना लिया ?
तब पुलस्त्य ने जो नारद को बताया वो ही आपको आज बता रहा हु |
पुलस्त्य ने कहा हे पुत्र नारद सुनो |
त्रेतायुग में महिष्मती नगरी में के राजा था | जिनका नाम कृतवीर्य था |
उनका जन्म हैहयवंशी कुल में हुआ था |
उस राजा की सहस्त्र एक हजार राणिया थी |
उनके वहा एक उत्तम पुत्र हुआ जो देवताओ,पितृओ,महात्माओ को पूजा था |
और व्रती भी था | और बहुत ही विनम्र था फिर भी उनके वहा संतान नहीं हुए थे | वो निःसंतान था | सभी प्रकार के योग भोग वैभव युक्त था |
उन राजा को पुत्र बिना का राज्य मोह मुक्त लगने लगा |
उसी कारण से वो तप करने में लग गए | उन्होंने अपने मन को तप में युक्त कर लिया |
उन्होंने पाने राज्य को मंत्री को सौपदिया और
अपनी मुख्य रानी को साथ में वन में निकल गए |
उन्हें ऐसे वन में जाते हुए देखकर उनकी उत्तम पटरानी पद्मिनी जो इक्ष्वाकु कुल में जन्मी हुई राजा हरिश्चंद्र की पुत्री और वो पतिव्रता थी |
और वो भी उनके साथ राजा के साथ सबकुछ छोड़कर तप करने के लिए गंधमादन पर्वत पर चली गई | वहा जाने के बाद राजा ने दशहजार वर्षो तक भगवान् विष्णु का तप किया ( अनुष्ठान किया ) |
इतना तप करने के बाद भी उसे संतान की प्राप्ति ना हुई |
पश्चात तप के कारण उनकी पतिव्रता ने उन्हें सिर्फ दुर्बल शरीर में देखा |
फिर उन्होंने सती अनसूया को पूछ मेरे पति इतने वर्षो से भगवान् की तपश्चर्या कर रहे है फिर भी वो प्रसन्न नहीं हो रहे है |
आप मुझे ऐसा कोई व्रत बताये जो करने से मुझपे केशव प्रसन्न हो जाए |
जो करने से मुझे पुत्र प्राप्त हो |
फिर सती अनसूया ने उन पद्मिनी को खुश होकर बताया |
तुम मल मास में तीर्थ स्नान करो |
और तुम उस मलमास की दोनों एकादशी जिनका नाम पद्मिनी और परमा है वो व्रत करो |
वो व्रत पूरी रात जागकर करो | जो शास्त्र के अनुसार करने से तुम्हे उत्तम संतान की प्राप्ति होगी |
ऐसा कहे अनुसार उसने एकादशी में उपवास किया |
निर्जला रहकर एकादशी की |
उसने भगवान् के आगे पूरी रात मंत्र जाप आदि किया |
नृत्य किया | भगवान की स्तुति की |
यह करने से भगवान प्रसन्न हुए और गरुड़ पर बैठकर उन्हें दर्शन दिया |
और कहा मांग वरदान तुम्हे जो चाहिए वो में दूंगा |
तब पद्मिनी ने कहा आप मुझे नहीं किन्तु मेरे पति को बड़ा वरदान दीजिये | तब भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा हे पद्मिनी तुमने मुझे व्रत पूर्वक प्रसन्न किया है |
तुमने इस परम पवित्र पुरुषोत्तम मॉस की एकादशी का विधिपूर्वक व्रत किया है |
इस लिए में प्रसन्न हुआ हु |
फिर भगवान ने राजा कृतवीर्य से कहा हे राजेंद्र तुम्हारे मन जो भी कामना है वो बताओ क्यों की तुम्हारी पत्नी ने तुम्हारे लिए ही मुझे प्रसन्न किया है | बताओ तुम्हारी क्या कामना है ? यह सुनकर राजा बहुत खुश हो गया |
राजा ने भगवान् से कहा मुझे ऐसा पुत्र दो जो बड़ी भुजाओ वाला हो और सर्वको नमस्कार करने योग्य हो |
सिर्फ आपके सिवा और उसे कोई भी पराजित ना कर सके ऐसा पुत्र दो |
भगवान ने तथास्तु कहा और भगवान् अदृश्य हो गए | फिर राजा पत्नी के साथ खुश होकर अपने नगर वापिस आया |
भगवान् के वचन अनुसार उसे पद्मिनी से उत्तम संतान की प्राप्ति हुई | जिसका नाम उन्होंने सहस्त्रार्जुन रखा | वो महाबलवान था |
और इसी एकादशी के व्रत से उत्पन्न होने के कारण वो बलवान था और इसी के प्रभाव से उसने रावण को पराजित कर बंधी बना लिया था |
पुरुषोत्तम मास की इसी एकादशी से पद्मिनी और राजा को महाबलवान पुत्र प्राप्त हुआ था | यह कथा सुनाकर पुलस्त्य ऋषि वहा से चले गए |
यही कथा भगवान् श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को सुनाई थी |
यह सुनकर राजा युधिष्ठिर ने भी अपने भइओ सहित यह उत्तम एकादशी का व्रत किया |
वैसे ही यह कथा सुनने वाले भी परमपद को प्राप्त करते है |
|| अस्तु ||
कोई टिप्पणी नहीं: