दुर्गा सप्तशती | Durga Saptshati |
दुर्गा सप्तशती
गुप्त नवरात्री में करे गुप्त सप्तशती का पाठ
दुर्गा सप्तशती के पाठ से जो फल प्राप्त होता है
वो फल इस गुप्तसप्तशती के पाठ से प्राप्त होता है
नौ दिनों तक मातारानी के आगे या श्रीयंत्र के आगे गाय के घी का दीपक प्रज्वलित करके
मानसिक संकल्प करके ( अपनी कामना अनुसार संकल्प करे )
और मातारानी को खीर का भोग लगाकर इस लघु गुप्त सप्तशती के नौ पाठ करने से माँ दुर्गा की पूर्ण कृपा प्राप्त करे |
इस स्तोत्र को पढ़ने से पहले हो सके तो तंत्रोक्त दुर्गाकवच
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करे और बाद में
इस लघु गुप्त सप्तशती का पाठ करे |
इसका कोई विनियोग न्यास आदि नहीं है नाही यह शापित या कीलित है |
ॐ ब्रीं ब्रीं ब्रीं वेणुहस्ते स्तुत सुर बटुकैर्हां गणेशस्य माता |
स्वानन्दे नन्दरूपे अनहतनिरते मुक्तिदे मुक्तिमार्गे ||
हंसः सोऽहं विशाले वलयगति हसे सिद्ध देवी समस्ता
हीं हीं हीं सिद्धलोके कच रुचि विपुले वीरभद्रे नमस्ते || १ ||
ॐ ह्रींकारोच्चारयन्ती मम हरति भयं चण्डमुण्डौ प्रचण्ड़े
खां खां खां खड्ग पाणे ध्रक ध्रक ध्रकिते उग्ररूपे स्वरूपे |
हुं हुं हुँकार नादे गगन भुवि तले व्यापिनी व्योमरूपे
हं हं हँकार नादे सुरगण नमिते चण्डरुपे नमस्ते || २ ||
ऐं लोके कीर्तयन्ति मम हरतु भयं राक्षसान हन्यमाने
घ्रां घ्रां घ्रां घोररूपे घघ घटिते घर्घरे घोर रावे |
निर्मांसे काकजङ्घे घसित नख नखा धूम्रनेत्रे त्रिनेत्रे
हस्ताब्जे शूलमुण्डे कुल कुल कुकुले सिद्धहस्ते नमस्ते || ३ ||
ॐ क्रीं क्रीं क्रीं ऐं कुमारी कुह कुह मखिले कोकिलेमानुरागे
मुद्रासंज्ञं त्रिरेखा कुरु कुरु सततं सततं श्रीमहामारि गुह्ये |
तेजोंगे सिद्धिनाथे मनुपवन चले नैव आज्ञा निधाने
ऐंकारे रात्रिमध्ये स्वपित पशुजने तंत्रकान्ते नमस्ते || ४ ||
ॐ व्रां व्रीं व्रूं व्रैं कवित्वे दहनपुर गते रुक्मिरूपेण चक्रे
त्रिः शक्त्या युक्तवर्णादिक करनमिते दादिवं पूर्व वर्णे |
ह्रीं स्थाने कामराजे ज्वल ज्वल ज्वलिते कोशिनि कोशपत्रे
स्वच्छन्दे कष्टनाशे सुरवर वपुषे गुह्यमुंडे नमस्ते || ५
ॐ घ्रां घ्रीं घ्रूं घोरतुण्डे घघ घघ घघघे घर्घरान्यांघ्रिघोषे
ह्रीं क्रीं द्रूं द्रोंच चक्रे रर रर रमिते सर्वज्ञाने प्रधाने |
द्रीं तीर्थेषु च ज्येष्ठे जुग जुग जुजुगे म्लीं पदे कालमुण्डे
सर्वाङ्गे रक्तधोरा मथन करवरे वज्रदण्डे नमस्ते || ६ ||
ॐ क्रां क्रीं क्रूं वामनमिते गगन गड़गड़े गुह्य योनिस्वरूपे
वज्रांगे वज्रहस्ते सुरपति वरदे मत्त मातङ्गरूढे |
स्वस्तेजे शुद्धदेहे लललल ललिते छेदिते पाशजाले
कुंडल्याकाररुपे वृष वृषभ ध्वजे ऐन्द्रि मातर्नमस्ते || ७ ||
ॐ हुं हुं हुंकारनादे विषमवशकरे यक्ष वैताल नाथे
सुसिद्ध्यर्थे सुसिद्धेः ठठ ठठ ठठठः सर्वभक्षे प्रचन्डे |
जूं सः सौं शान्ति कर्मेऽमृत मृतहरे निःसमेसं समुद्रे
देवि त्वं साधकानां भव भव वरदे भद्रकाली नमस्ते || ८ ||
ब्रह्माणी वैष्णवी त्वं त्वमसि बहुचरा त्वं वराहस्वरूपा
त्वं ऐन्द्री त्वं कुबेरी त्वमसि च जननी त्वं कुमारी महेन्द्री |
ऐं ह्रीं क्लींकार् भूते वितळतळ तले भूतले स्वर्गमार्गे
पाताले शैलशृङ्गे हरिहर भुवने सिद्धचन्डी नमस्ते || ९ ||
हं लं क्षं शौण्डिरुपे शमित भव भये सर्वविघ्नान्त विघ्ने
गां गीं गूं गैं षडङ्गे गगन गतिगते सिद्धिदे सिद्धसाध्ये |
वं क्रं मुद्रा हिमांशोरप्रॅहसतिवदने त्र्यक्षरे ह्सैं निनादे
हां हूँ गां गीं गणेशी गजमुखजननी त्वां महेशीं नमामि
|| इति श्री मार्कण्डेय कृत लघुगुप्त सप्तशती सम्पूर्णं ||
हर बार पाठ करने से पहले दुर्गातन्त्रोक्त कवच या
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ नहीं करना है सिर्फ एक ही बार जब पाठ की शुरुआत करे तब यह पाठ करना है
फिर दूसरे दिन भी वैसे ही जब पाठ की शुरुआत करे उससे पहले एक बार दुर्गा तंत्रोक्त कवच या कुंजिका स्तोत्र का पाठ करे और पश्चात गुप्तसप्तशती का आरम्भ करे
संकल्प भी एक ही बार लेना है प्रथम दिन ( पहले नवरात्र ) में |
नवरात्री में नौदिनो तक नौ नौ पाठ करके गुप्त सप्तशती की साधना करनी चाहिए
इस साधना से दुर्गा सप्तशती के पाठ का फल मिलता है
इस पाठ से माँ दुर्गा की पूर्ण कृपा प्राप्त होती है
दुर्गा माँ सभी कार्य सिद्ध करते है
लक्ष्मी प्राप्ति के द्वार खुल जाते है
व्यपार में वृद्धि होती है
दुश्मनो पर विजय प्राप्त होती है
सरकारी कामो में सफलता प्राप्त होती है
और सभी प्रकार के लाभ मिलते है
|| अस्तु ||
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