दुर्गा तंत्रोक्त कवच | Durga Tantrokt Kavach |
दुर्गा तंत्रोक्त कवच
दुर्गा मंत्र का जप करने से पहले इस कवच का अवश्य एक बार पाठ
करना चाहिए |
इसी कवच में महादेव जी कहते है की
इस कवच का पाठ किये बिना दुर्गा मंत्र कभी सफल नहीं होता और नर्क की प्राप्ति होती है |
माँ दुर्गा की मूर्ति या श्रीयंत्र के सामने गाय के घी का दीपक प्रज्वलित करे |
तिल के तेल या सरसौ के तिल का एक अधिक दीपक भी
प्रज्वलित कर सकते है |
दुर्गा तंत्रोक्त दुर्गा कवच
श्रुणु देवि प्रवक्ष्यामि कवचं सर्वसिद्धिदम् |
पठित्वा पाठयित्वा च नरो म्युच्येत सङ्कटात् || १ ||
श्री महादेवजी कहते है
हे देवि अब में सम्पूर्ण सिद्धियों को देनेवाले दुर्गा कवच को कहता हु | जिसके पढ़ने मात्र से या पाठ करने या कराने मात्र से मनुष्य
सभी संकटो से छुट जाता है || १ ||
अज्ञात्वा कवचं देवि दुर्गामन्त्रं च यो जपेत् |
स नाप्नोति फलं तस्य परं च नरकं व्रजेत् || २ ||
हे देवि इस दुर्गाकवच को जाने बिना ही जो दुर्गा मंत्र की उपासना करता है वो कभी सफल नहीं होता | वो मंत्र कभी फलदायी नहीं होता |
और उसे नरक की प्राप्ति होती है || २ ||
उमादेवी शिरः पातु ललाटे शूलधारिणी |
चक्षुषी खेचरी पातु कर्णौ चत्वरवासिनी || ३ ||
उमादेवी ( पार्वती ) सिर की रक्षा करे, शूलधारिणी ललाट की रक्षा करे,
खेचरी दोनों नेत्रों की रक्षा करे,चत्वरवासिनी दोनों कानो की रक्षा करे || ३ ||
सुगन्धा नासिके पातु वदनं सर्वधारिणी |
जिह्वां च चण्डिका देवी ग्रीवां सौभद्रिका तथा || ४ ||
सुगन्धा नासिका की रक्षा करे, सर्वधारिणी मुख की,
चण्डिका जिह्वा की रक्षा करे,सौभद्रिका ग्रीवा ( गले ) की रक्षा करे || ४ ||
अशोकवासिनी चेतो द्वौ बाहू वज्रधारिणी |
हृदयँ ललिता देवी उदरं सिंहवाहिनी || ५ ||
अशोकवासिनी चित्तकी रक्षा करे,वज्रधारिणी दोनों भुजाओ की ( बाहु की )
ललिता ह्रदय की रक्षा करे, सिंहवाहिनी उदरप्रदेश की रक्षा करे || ५ ||
कटिं भगवती देवी द्वावूरू विन्ध्यवासिनी |
महाबला च जङ्घे द्वे पादौ भूतलवासिनी || ६ ||
भगवती देवि कटि की रक्षा करे, विन्ध्यवासिनी दोनों उरुकि रक्षा करे,
महाबला दोनों जंघाओँ की रक्षा करे( जांघो की ), भूतलवासिनी दोनों पैरो की रक्षा करे || ६ ||
एवं स्थिताऽसि देवि त्वं त्रैलोक्ये रक्षणात्मिका |
रक्ष मां सर्वगात्रेषु दुर्गे देवि नमोऽस्तुते || ७ ||
हे देवि इस प्रकार तुम रक्षारूप से इस त्रिलोक में ( त्रैलोक्य निवासिनी )
निवास करती हो |
हे दुर्गे देवि तुम मेरे शरीर मात्र की रक्षा करो | में तुम्हे नमस्कार करता हु |
( नमस्कार करती हु ) || ७ ||
|| श्री दुर्गा तन्त्रे दुर्गा कवचं समाप्तं ||
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