श्री महामृत्युञ्जय कवच | Mahamrityunjaya Kavach |

 

श्री महामृत्युञ्जय कवच

श्री महामृत्युञ्जय कवच

महामारी

महारोग

भयंकर शत्रु निवारण स्तोत्र

यह कवच तीनो लोकोमे दुर्लभ है

सर्वमंत्रो में तंत्रो में दुर्लभ है

यह पुण्य-पुण्यप्रद दिव्य देवताओ का भी देवता है

जो इस कवचको पढ़ता है या पढ़ाता है

उसके हाथो में महेशानि सभी सिद्धियाँ उपस्थित हो जाती है

जो इसे धारण करता है वह शत्रु को मार कर विजय प्राप्त करता है

हे देवि ग्रहबाधा में,व्यक्ति इसका जप करने से पुनःसुख  करता है

महाभय में,महारोग में,महामारी में,दुर्भिक्ष में शत्रुसंहार में अवश्य इस कवचको पढ़ना चाहिए |

भैरव कथित श्री महामृत्युञ्जय कवच

श्री मंत्र महार्णव में

भैरवजी ने यह कवच माँ महेश्वहरि को सुनाया था

यह  अद्भुत कवच है


भैरव उवाच |

शृणुष्वपरमेशानि कवचं मन्मुखोदितम |

महामृत्युञ्जयस्यास्य देयं परमादभुतम || ||


त्रैलोक्याधिपतिर्भूत्वा सुखितोऽस्मि महेश्वरि |

यं धृत्वा पठित्वा यं श्रुत्वा कवचोत्तमम |  || ||


तदेव वर्णयिष्यामि तव प्रीत्यावरानने |

तथापि परमं तत्त्वं दातव्यं दुरात्मने || ||


विनियोगः

अस्य श्रीमहामृत्युञ्जयकवचस्य श्रीभैरवऋषिः|

गायत्रीछन्दः | श्रीमृत्युञ्जय रुद्रो देवता | बीजम् | जूं शक्तिः | सः कीलकम्

हौं इति तत्त्वम | चतुर्वर्गफलसाधने  पाठे  विनियोगः |


चन्द्रमण्डल मध्यस्थे रुद्रमाले विचित्रिते |

तत्रस्थं चिन्तयेत्साध्यं मृत्युं प्राप्नोति जीवति || ||


जूं सः हौं शिरः पातु देवो मृत्युञ्जयो मम् |

श्रीशिवो वै ललाटं हौं भ्रुवो सदाशिवः || ||


नीलकण्ठोऽवतान्नेत्रे   कपर्द्दी मेवताऽछ्रुति  |

त्रिलोचनोऽवतां गण्डौ नासां में त्रिपुरान्तकः || ||


मुखं पीयूषघटभृदोष्टौ में कृत्तिकाम्बरः |

हनुं मे हाटकेशानो मुखं वटुकभैरवः || ||


कन्धरां कालमथनो गलं गणप्रियोऽवतु |

स्कन्धौ स्कन्दपिता पातु हस्तौ मे गिरिशोऽवतु || ||


नखान्मे गिरिजानाथः पायादंगुलिसंयुतान |

स्तनौ तारापतिः पातु वक्षः पशुपतिर्मम् || ||


कुक्षिं कुबेरवदनः पार्श्वौ मे मारशासनः |

शर्वं पातु तथा नाभिं शूली पृष्ठं ममाऽवतु || १० ||

 

शिश्नं में शङ्करः पातु गुह्यं गुह्यकवल्लभः |

कटिं कालान्तकः पायादूरु मेंधकघातकः || ११ ||


जागरुकोऽवताज्जानू जङ्घे मे कालभैरवः |

गुल्फौ पायाज्जटाधारी पादौ मृत्युञ्जयोऽवतु || १२ ||


पादादिमूर्द्धपर्यन्तं सद्योजातु ममावतु |

रक्षाहीनं नामहीनं वपुः पात्वमृतेश्वरः  || १३ ||


पूर्वे बलविकरणो दक्षिणे कालशासनः |

पश्चिमे पार्वती नाथ उत्तरे मां मनोन्मम: || १४ ||


ऐशान्यामीश्वरः पायादाग्नेयामग्निलोचनः |

नैऋत्यां शम्भुरव्यान्मां वायव्यां वायुवाहनः || १५ ||


ऊर्ध्वं बलप्रमथनः पाताले परमेश्वरः |

दक्षदिशू दास पातु महामृत्युञ्जयश्च माम् || १६ ||


रणेराजकुले द्यूते विषमे प्राणसंशये |

पायादोजूं महारुद्रो देवदेवो दशाक्षरः || १७ ||


प्रभाते पातु मां ब्रह्मा मध्याह्ने भैरवोऽवतु |

सायं सर्वेश्वरः पातु निशायां नित्यचेतनः || १८ ||


अर्द्धरात्रे महादेवो निशान्ते मां महोदयः |

सर्वदा सर्वतः पातु जूं सः हौं मृत्युञ्जयः || १९ ||


इतीदं कवचं पुण्यं त्रिषु लोकेषु दुर्लभम् |

सर्वमन्त्रमयं गुह्यं सर्वतन्त्रेषु गोपितम् || २० ||


पुण्यं पुण्यप्रदं दिव्यं देवदेवादिदैवतम् |

इदं पठेन्मन्त्रं कवचं वाचयेत्ततः || २१ ||


तस्य हस्ते महादेवि त्र्यंबकस्याष्टसिद्धयः |

रणे धृत्वा चरेद्युद्धं हत्वा शत्रुञ्जयं लभेत् || २२ ||


जपं कृत्वा गहे देवि सम्प्राप्स्यति सुखं पुनः |

महाभये महारोगे महामारी भये तथा || २३ ||


दुर्भिक्षे शत्रुसंहारे पठेत्कवचमादरात् |


|| महामृत्युञ्जय कवच समूर्णं ||

श्री महामृत्युञ्जय कवच | Mahamrityunjaya Kavach | श्री महामृत्युञ्जय कवच | Mahamrityunjaya Kavach | Reviewed by Bijal Purohit on 1:07 am Rating: 5

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