पार्वती स्तुतिः | Parvati stuti |
पार्वती स्तुतिः
|| ब्रह्मादय ऊचुः ||
त्वं माता जगतां पितापि च हरः सर्वे इमे बालका
स्तस्मात्त्वच्छिशुभावतः सुरगणे नास्त्येव ते सम्भ्रमः |
मातस्त्वं शिवसुन्दरि त्रिजगतां लज्जास्वरुपा यत
स्तस्मात्त्वं जय देवि रक्ष धरणीं गौरि प्रसीदस्व नः || १ ||
ब्रह्मा आदि देवताओंने कहा
माता शिवसुन्दरी, आप तीनों लोकोंकी माता हैं और शिवजी पिता हैं तथा ये सभी देवतागण आपके बालक हैं | अपनेको आपका शिशु माननेके कारण देवताओंको आपसे कोई भी भय नहीं है |
देवि, आपकी जय हो |
गौरी, आप तीनों लोकोंमें लज्जारुपसे व्याप्त हैं, अतः पृथ्वीकी रक्षा करें और हमलोगोंपर प्रसन्न हों || १ ||
त्वमात्मा त्वं ब्रह्म त्रिगुणरहितं विश्वजननि
स्वयं भूत्वा योषित्पुरुषविषयाहो जगति च |
करोष्येवं क्रीडां स्वगुणवशतस्ते च जननीं
वदन्ति त्वां लोकाः स्मरहरवरस्वामिरमणीम् || २ ||
विश्वजननी, आप सर्वात्मा हैं और आप तीनों गुणोंसे रहित ब्रह्म हैं |
अहो, अपने गुणोंके वशीभूत होकर आप ही स्त्री तथा पुरुषका स्वरुप धारण करके संसारमें इस प्रकारकी क्रीडा करती हैं और लोग आप जगज्जन्नीको कामदेवके विनाशक परमेश्वर शिवकी रमणी कहते हैं || २ ||
त्वं स्वेच्छावशतः कदा प्रतिभवस्यंशेन शम्भुः पुमा
न्स्त्रीरुपेण शिवे स्वयं विहरसि त्रैलोक्यसम्मोहिनि |
सैव त्वं निजलीलया प्रतिभवन् कृष्णः कदाचित्पुमान्
शम्भुं सम्परिकल्प्य चात्ममहिषीं राधां रमस्यम्बिके || ३ ||
तीनों लोकोंको सम्मोहित करनेवाली शिवे, आप अपनी इच्छाके अनुसार अपने अंशसे कभी पुरुषरुपमें शिव बन जाती हैं और स्वयं स्त्रीरुपमें विद्यमान रहकर उनके साथ विहार करती हैं |
अम्बिके, वे ही आप अपनी लीलासे कभी पुरुषरुपमें कृष्णका रुप धारण कर लेती हैं और उनमें शिवकी परिभावना कर स्वयं कृष्णकी पटरानी राधा बनकर उनके साथ रमण करती हैं || ३ ||
प्रसीद मातर्देवेशि जगद्रक्षणकारिणि |
विरम त्वमिदानीं तु धरणीरक्षणाय वै || ४ ||
जगतकी रक्षा करनेवाली देवेश्वरि माता, प्रसन्न होइये और पृथ्वीकी रक्षाके लिये अब इस लीलाविलाससे विरत हो जाइये || ४ ||
|| इति श्री महाभागवते महापुराणे ब्रह्मादर्येः कृत पार्वतीस्तुतिः सम्पूरर्णम् ||
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