श्री लक्ष्मी कवच | Shree Lakshmi Kavach |

 

श्री लक्ष्मी कवच

श्री लक्ष्मी कवच



माँ लक्ष्मी का यह कवच सर्वश्रेष्ठ है और सभी मनोकामनाओ को पूर्ण करनेवाला है | गृहस्थ मनुष्य को अवश्य यह पाठ करना चाहिए |

इस कवच के पाठ से पुत्र और धन की प्राप्ति होती है | भय दूर होकर निर्भय हो जाता है | इस कवच के प्रसाद से अपुत्र को पुत्र प्राप्त होता है |

धन की इच्छा वालो को धन प्राप्त होता है | मोक्ष की इच्छा वाला मोक्ष प्राप्त करता है |

यदि स्त्रियाँ इस कवच को लिखकर बाई भुजा में इस कवच को धारण करे तो गर्भवती महिला को उत्तम पुत्र प्राप्त होता है |

बाँझ स्त्री भी गर्भवती होती है अर्थात उसे संतान प्राप्ति के द्वार खुल जाते है | जो मनुष्य नियमित रूप से भक्ति सहित इस कवच का पाठ करता है वो स्वयं विष्णु समान तेजस्वी होता है |

मृत्यु का उसे कोई भय नहीं रहता | यह कवच जो स्वयं सुनता है या दुसरो को सुनाता है वह सम्पूर्ण पापो से मुक्त हो जाता है |

परमगति को प्राप्त होता है | सङ्कट में,घोर सङ्कट में,महा भयंकर आपत्ति में, हन वन में, राजमार्ग, जलमार्ग, में इस कवच का पाठ करता है वो सर्वत्र विजय प्राप्त करता है |

बाँझ स्त्री अगर इस कवच का अगर तीन पक्ष यानी डेढ़ महीने तक जो कोई स्त्री इस कवच को सुनती है या पाठ करती है उन्हें तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति होती है | जो मनुष्य शुद्ध मन से दो महीने तक ब्राह्मण के मुख से इस कवच को सुनता है उसकी सभी कामना पूर्ण होती है वह सभी बंधनो से मुक्त हो जाता है |

जिस स्त्री को संतान होने के बाद जीते नहीं है वो तीन महीने अगर पाठ करे या सुने तो उसके पुत्र जीवित रहते है |

रोगी मनुष्य इसका एक महीने तक पाठ करे तो वो सभी रोगो से मुक्त हो जाता है | जो मनुष्य इस कह को भोजपत्र या ताड़पत्र पर इसे लिखकर अपने घर में स्थापित करता है उसे ना अग्निकाना चोरो का,भय रहता है |

जो मनुष्य स्वयं इस कवच को पढता है और दुसरो से पढ़वाता है उस मनुष्य पर सभी देवी-देवता प्रसन्न हो जाते है |

और इस कवच के पाठ से माँ लक्ष्मी स्थिर निवास करने लगती है |


|| श्री लक्ष्मी कवचं ||

लक्ष्मी में चाग्रतः पातु कमला पातु पृष्ठतः |

नारायणी शीर्ष देशे सर्वाङ्गे श्री स्वरूपिणी || ||


राम पत्नी तु प्रत्यङ्गे रामेश्वरी सदाऽवतु |

विशालाक्षी योगमाया कौमारी चक्रिणी तथा || ||


जय दात्री धन दात्री पाशाक्ष मालिनी शुभा |

हरी प्रिया हरी रामा जयँकरी महोदरी || ||


कृष्ण परायणा देवी श्रीकृष्ण मनमोहिनी |

जयँकरी महारौद्री सिद्धिदात्री शुभङ्करि || ||


सुखदा मोक्षदा देवी चित्र कूट निवासिनी |

भयं हरतु भक्तानां भव बन्धं विमुञ्चतु || ||


कवचं तन्महापुण्यं यः पठेद भक्ति संयुतः |

त्रिसन्ध्यमेक सन्ध्यं वा मुच्यते सर्व संकटात || ||



|| फलश्रुतिः ||

कवचास्य पठनं धनपुत्र विवर्द्धनं |

भीति विनाशनं चैव त्रिषु लोकेषु कीर्तितं || ||


भूर्जपत्रे समालिख्य रोचना कुंकुमेन तु |

धारणाद गलदेशे सर्व सिद्धिर्भविष्यति || ||


अपुत्रो लभते पुत्रं धनार्थी लभते धनं |

मोक्षार्थी मोक्षमाप्नोति कवचस्य प्रसादतः || ||


गर्भिणी लभते पुत्रं वन्ध्या गर्भिणी भवेत् |

धारयेद यदि कण्ठे अथवा वाम बाहुके || १० ||


यः पठेन्नियतो भक्त्या एव विष्णु वद भवेत् |

मृत्यु व्याधि भयं तस्य नास्ति किञ्चिन्मही तले || ११ ||


पठेद वा पाठयेद वापि शुणुयाच्छ्रावयेदपि |

सर्व पाप विमुक्तः लभते परमां गतिम् || १२ ||


सङ्कटे विपदे घोरे तथा गहने वने |

राजद्वारे नौकायां तथा रण मध्यतः || १३ ||


पठनाद धारणादस्य जयमाप्नोति निश्चितम |

अपुत्रा तथा वन्ध्या त्रिपक्षं शृणुयाद यदि || १४ ||


सुपुत्रं लभते सा तु दीर्घायुष्कं यशस्विनीं |

शुणुयाद यः शुद्ध-बुद्ध्या द्वौ मासौ विप्र वक्त्रतः || १५ ||


सर्वान कामान वाप्नोति सर्व बन्धाद विमुच्यते |

मृतवत्सा जीव वत्सा त्रिमासं श्रवणं यदि || १६ ||

 

रोगी रोगाद विमुच्यते पठनान्मास मध्यतः |

लिखित्वा भूर्जपत्रे अथवा ताड़पत्रके || १७ ||


स्थापयेन्नित्यं गेहे नाग्नि चौर भयं क्वचित्त |

शृणुयाद धारयेद वापि पठेद वा पाठयेदपि || १८ ||


यः पुमान सततं तस्मिन् प्रसन्नाः सर्व देवताः |

बहुना किमिहोक्तेन सर्व जीवेश्वरेश्वरी || १९ ||


आद्याशक्तिः सदालक्ष्मीः भक्तानुग्रह कारिणी |

धारके पाठके चैव निश्चला निवसेद ध्रुवं || २० ||


|| श्री तंत्रोक्तं श्रीलक्ष्मी कवचम सम्पूर्णं ||


श्री लक्ष्मी कवच | Shree Lakshmi Kavach | श्री लक्ष्मी कवच | Shree Lakshmi Kavach | Reviewed by Bijal Purohit on 5:56 pm Rating: 5

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