श्री महामृत्युञ्जय मंत्र विधान | Shree Mahamrutunjay Mantra Vidhan |


श्री महामृत्युञ्जय मंत्र विधान

श्री महामृत्युञ्जय मंत्र विधान


सभी प्रकार की विपत्तियों और संकटो का विनाश करनेवाला अमोघ मंत्र है महामृत्युंजय मंत्र विधान।इसे मृतसञ्जीवन मंत्र भी कहते हैअगर कोई रोगी है या जो शारीरिक रूप से स्वस्थ नहीं रहते उसके लिये तो यह रामबाण है |

या जो महादेव के साधक है उन्हें सम्पूर्ण रूप से महादेव की कृपा प्राप्त होती है इस विधान से |


|| इस मंत्र की साधना दो प्रकार से की जाती है || 

1 - सकाम यानी किसी उद्देश्य से जैसे रोग निवारण आदि कामना के लिए 

2 - निष्काम साधना जिसमे कोई मनोकामना का विधान नहीं सिर्फ महादेव की कृपा प्राप्त करने के लिए 

और दोनों का विधान भिन्न भिन्न है |

इसके अनुष्ठान के लिये विशेष नियमो का पालन करना जरुरी है |

कुछ संक्षिप्त क्रम यहाँ दे रहे है हम |

उसका समान्यक्रम इस प्रकार से है |


गणेशपूजन, मातृका पूजन, कुलदेवी पूजन, स्वस्तिपुण्याहवाचन, नान्दीश्राद्ध, आचार्यादिऋत्विक वरण, आदि |

अगर दशांश यज्ञ करना हो तो यज्ञ के पहले अग्निस्थापननवग्रहस्थापन पूजन, ब्रह्माजी पूजन कुण्ड पूजन आदि |


अगर दशांश यज्ञ ना करना हो तो दशांश जाप,तद्दशांश तर्पण,तद्दशांश मार्जन,तद्दशांश ब्रह्मभोजन आदि करवाए।

और सबसे महत्वपूर्ण संकल्प होता है  आवश्यक है |

जिस कामना के लिये आप यह अनुष्ठान करते हो उसका संकल्प लेकर मंत्र जाप का या अनुष्ठान का आरम्भ करना चाहिए।


कर्म का संक्षिप्त विवरण।

गणेश स्मरण-हनुमत स्मरण-वृषभ स्मरण-कूर्म स्मरण-पार्वती माँ स्मरण-शिवपूजन आदि सम्पूर्ण करने के बाद मृत्युञ्जय मंत्र का आरम्भ करे |


|| महामृत्युञ्जय मंत्र विधान || 

विनियोग के लिए अपने दाए हाथ में जल पकड़कर विनियोग पढ़े |

विनियोगः अस्य श्रीमृत्युञ्जयमंत्रस्य वसिष्ठऋषिः श्रीमृत्युञ्जय रुद्रो देवता अनुष्टुप छन्दः हौं बीजं जूं शक्तिः सः कीलकं श्रीमृत्युञ्जयप्रीतये मम

( यजमानस्य ) अभीष्ट सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः

हाथ का जल किसी पात्र में छोड़ दे |


विनियोग के बाद न्यास करे |

ऋष्यादिन्यासः 

वसिष्ठ ऋषये नमः शिरसि | बोलकर अपने सिर को स्पर्श करे

अनुष्टुप छन्दसे नमः मुखे | बोलकर अपने मुख को स्पर्श करे

श्रीमृत्युञ्जय रुद्रदेवतायै नमो हृदये | बोलकर ह्रदय को स्पर्श करे

हौं बीजाय नमः गुह्ये | बोलकर अपने गुप्त भाग को स्पर्श करे

जूं शक्तये नमः पादयोः | बोलकर अपने पैरो को स्पर्श करे

सः कीलकाय नमः सर्वाङ्गेषु | बोक्लर अपने दोनों हाथो से सिर से पेअर तक दोनों हाथो को घुमाये


करन्यास:

त्र्यंबकं अङ्गुष्ठाभ्यां नमः | यजामहे तर्जनीभ्यां नमः

सुगंधिं पुष्टिवर्धनं मध्यमाभ्यां नमः

उर्वारुकमिव बंधनात अनामिकाभ्यां नमः | मृत्योर्मुक्षीय कनिष्ठिकाभ्यां नमः

मामृतात करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः


हृदयादि न्यास

 त्र्यंबकं हृदयाय नमः |

यजामहे शिरसे स्वाहा |

सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं शिखायै वौषट

उर्वारुकमिव बंधनात कवचाय हुम् |

मृत्योर्मुक्षीय नेत्रत्रयाय वौषट

मामृतात अस्त्राय फट


अक्षरन्यासः 

त्र्यं नमः पूर्वमुखे। बं मनः पश्चिममुखे। कं नमः दक्षिणमुखे। यं नमः उत्तरमुखे। जां नमः शिरसि। मं नमः कंठे। हें नमः मुखे। सुं नमः नाभौ। गं नमः ह्रदि। धिं नमः पृष्ठे। पुं नमः कुक्षौ। ष्टिं नमः लिंगे। वं नमः गुदे। धं नमःदक्षिणोरुमूले। नं नमः वामोरुमूले। उं नमः दक्षिणोरूमध्ये। वां नमः वामोरुमध्ये। रुं नमः दक्षिणजानुनि। मिं नमः दक्षिणजानुवृत्ते। वं नमः वामजानुवृत्ते। बं नमः दक्षिणस्तने। घं नमः वामस्तने। नां नमः दक्षिणापार्श्वे। त्यों नमः दक्षिणपादे। मुं नमः वामपादे। क्षीं नमः दक्षिण करे। यं नमः वामकरे। मां नमः दक्षिणनासायाम।  मृं नमः वामनासायाम। तां नमः मूर्घ्नि।


पदन्यासः 

त्र्यम्बकं शिरसि। यजामहे भ्रुवोः। सुगंधिं नेत्रयोः। पुष्टिवर्धनम मुखे। उर्वारुकं गण्डयोः। इव ह्रदये। बंधनात जठरे। मृत्योः लिंगे। मुक्षीय ह्रदये। मां जान्वोः। अमृतात पादयोः।  

महामृत्युंजयमंत्रकरन्यास   

हौं जूं सः भूर्भुवः  स्वः त्र्यंबकं नमो भगवते रुद्राय शूलपाणये स्वाहा अंगुष्ठाभ्यां नमः। 

हौं जूं सः भूर्भुवः स्वः यजामहे नमो भगवते रुद्राय अमृतमूर्तये मांजीवय तर्जनीभ्यां नमः। 

हौं जूं सः भूर्भुवः स्वः सुगंधिं पृष्टिवर्धनम नमो भगवते रुद्राय चन्द्रेशिरसे जटिने स्वाहा मध्यमाभ्यां नमः। 

हौं जूं सः भूर्भुवः स्वः उर्वारुकमिव बंधनात नमो भगवते रुद्राय त्रिपुरान्तकाय ह्रां ह्रीं अनामिकाभ्यां नमः। 

हौं जूं सः भूर्भुवः स्वः मृत्योर्मुक्षीय नमो भगवते रुद्राय त्रिलोचनाय ऋग्यजुः साम मंत्राय कनिष्ठिकाभ्यां नमः।

हौं जूं सः भूर्भुवः स्वः मामृतात नमो भगवते रुद्राय अग्नित्रयाय ज्वल ज्वल मां रक्ष रक्ष अघोरास्त्राय करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः। 

एवं हृदयादि न्यासाः। 


ध्यानम 

हस्ताभ्यां कलशद्वयामृतरसैः आप्लावयन्तं शिरःद्वाभ्यां तौ दधतं मृगाक्षवलये द्वाभ्यां वहन्तं परम।  

अंके न्यस्तकरद्वयामृतघटं कैलासकान्तं शिवं स्वच्छांभोजगतं नवेन्दुमुकुटं देवं त्रिनेत्रं भजे ||  


मृत्युञ्जय मंत्र: 

भूः भुवः स्वः त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम | उर्व्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात स्वः भुवः भूः || 

षट्प्रणव युक्त मृत्युञ्जय मंत्र 

हौं जूं सः भूर्भुवः स्वः  त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम | उर्व्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात स्वः भुवः भूः सः जूं हौं || 

चतुर्दश ओंकार युक्त महामृत्युञ्जय मंत्र 

हौं जूं सः भूः भुवः स्वः  त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम | उर्व्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात स्वः भुवः भूः सः जूं हौं || 


जो कोई भी मनुष्य अगर उपरोक्त मंत्र में से कोई मंत्र करने में असमर्थ हो तो निम्नोक्त पुराणोक्त मृत्युंजय मंत्र का जाप करे

पुराणोक्त मृत्युंजय मंत्र

ह्रीं मृत्युञ्जय महादेव त्राहिमां शरणागतं

जन्ममृत्यु जराव्याधि पीडितं कर्मबन्धनैः || 


इस प्रकार से भगवान् महादेव के अनमोल और अमोघ

 मंत्र की साधना करने से बीमार से बीमार मनुष्य भी स्वस्थ हो जाता है


|| श्री महामृत्युञ्जय मंत्र साधना सम्पूर्णं || 

श्री महामृत्युञ्जय मंत्र विधान | Shree Mahamrutunjay Mantra Vidhan | श्री महामृत्युञ्जय मंत्र विधान | Shree Mahamrutunjay Mantra Vidhan | Reviewed by Bijal Purohit on 5:12 pm Rating: 5

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