श्री विष्णुसहस्त्र शाप विमोचन विधि | Shree Vishanu Shapvimochan Vidhi |
श्री विष्णुसहस्त्र शाप विमोचन विधि
विष्णुसहस्त्र शापविमोचन विधी |
क्युकी बिना शाप विमोचन किये विष्णुसहस्त्र पाठ करने से उसका कोई परिणाम प्राप्त नहीं होता है |
क्युकी यह पाठ महादेव द्वारा शापित है इसीलिए सबसे पहले इसे शाप में से मुक्त करना बहुत ही जरुरी है |
इस स्तोत्र के महदेवऋषि है, अनुष्टुप छंद है, रूद्र अनुग्रह शक्ति है |
शापविमोचन क्यों जरुरी है ?
विष्णोः सहस्त्रनाम्नां यो न कृत्वा शापमोचनम |
पठेच्छुभानि सर्वाणि स्तुस्तस्य निष्फलानि तुम ||
अर्थात विष्णुसहस्त्र पाठ शापविमोचन के बिना अगर किया जाए तो वो निष्फल हो जाता है |
रुद्राशाप विमोचन विधी : सर्वप्रथम विनियोग करे |
विनियोग : अस्य श्री विष्णोर्दिव्यसहस्त्रनाम्नां रुद्रशापविमोचन मंत्रस्य महादेवऋषिः | अनुष्टुप छन्दः | श्री रुद्रानुग्रहशक्तिर्देवताः | सुरेशः शरणंशर्मेति बीजं | अनन्तो हुत भुग भोक्तेति शक्तिः | सुरेश्वरायेति कीलकं | रुद्रशाप विमोचने विनियोगः |
उसके पश्चात् न्यास का विधान है सर्वप्रथम करन्यास कर बाद में हृदयादि न्यास का विधान करना है |
करन्यास : ॐ क्लीं ह्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः | ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः | ॐ ह्रुं मध्यमाभ्यां नमः | ॐ ह्रैं अनामिकाभ्यां नमः | ॐ ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः | ॐ ह्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः |
हृदयादिन्यास : ॐ क्लीं ह्रां हृदयाय नमः | ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा | ॐ ह्रुं शिखायै वौषट | ॐ ह्रैं कवचाय हुम् | ॐ ह्रौं नेत्रत्रयाय नमः | ॐ ह्यु: अस्त्राय फट |
इसके बाद फिर शापविमोचन मंत्र का सौ बार जाप करे |
मंत्र : 'ॐ क्लीं ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं हूँ : स्वाहा"
इस मंत्र का सौ बार जाप करे |
अब यहाँ से विष्णुसहस्त्रपाठ की विधि शुरू होती है |
सर्वप्रथम इसका विनियोग करना है |
विनियोगः ॐ अस्य श्री विष्णोर्दिव्यसहस्त्रनामस्तोत्रमंत्रस्य भगवान् वेदव्यास ऋषिः | श्री विष्णुः परमात्मा देवता अनुष्टुप छन्दः | अमृतांशूद्भवो भानुरिति बीजम | देवकीनन्दनः स्रष्टेति शक्तिः | त्रिसामा सामग: सामेति हृदयं | शङ्खभृन्नन्दकी चक्रिति कीलकं शार्ङ्गधन्वा गदाधर इत्यस्त्रं | रथांगपाणिरक्षोभ्य इति कवचं | उद्भवः क्षोभणो देव इति परमोमन्त्रः | श्री महाविष्णु प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः |
पश्चात् करन्यास-हृदयादिन्यास करने है |
करन्यास : ॐ विश्वं विष्णुर्वषट्कार इत्यङ्गुष्ठभां नमः | अमृतांशूद्भवो भानुरिति तर्जनीभ्यां नमः | ब्रह्मण्यो ब्रह्मकृद ब्रह्मेति मध्यमाभ्यां नमः | सुवर्णबिन्दुरक्षोभ्य इत्यनामिकाभ्यां नमः | निमिषोनिमिषः स्त्रग्वीति कनिष्ठिकाभ्यां नमः | रथांगपाणिरक्षोभ्य इति करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः |
हृदयादिन्यास : सुव्रतः सुमुखः सूक्ष्मः ज्ञानाय हृदयाय नमः | सहस्रमूर्धा विश्वात्मा ऐश्वराय शिरसे स्वाहा | सहस्त्रार्चिः सप्तजिह्व शक्त्यै शिखायै वौषट | त्रिसामा सामगः साम बलाय कवचाय हुम् | रथाङ्गपाणिरक्षोभ्य तेजसे नेत्राभ्यां वौषट | शार्ङ्गधन्वा गदाधरः वीर्याय अस्त्राय फट | ऋतुः सुदर्शनः कालः भूर्भुवः स्वरों | इति दिग्बन्धः |
पश्चात भगवान् विष्णु का ध्यान धरे |
ध्यान : सशङ्खचक्रं सकिरीट कुण्डलं सपीतवस्त्रं सरसीरुहेक्षणं |
संहारवक्ष स्थल कौस्तुभ श्रियं नमामि विष्णुं शिरसाचतुर्भुजं ||
या फिर यह भी ध्यान कर सकते है |
ध्यान: शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं | विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभांगं |
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं | वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथं | |
|| जय श्री कृष्ण ||
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