कार्तिकेयाक्ष कवचम | Kartikeyaksh kavacham |
कार्तिकेयाक्ष कवचम
पौराणिक कथा के अनुसार और उमयामल के अनुसार जब देवकी के सभी पुत्रो का कंस के द्वारा वध किया जाता है |
तबदेवकी नारदजी से पूछती है की में ऐसा क्या करू जिससे मेरे गर्भ और मेरे संतान की रक्षा हो सके ? तब नारदजी ने यहकार्तिकेय जी का उत्तम कवच बताया था जिसके पाठ से देवकी जी ने अपने गर्भ की रक्षा की और उनके गर्भ से जनार्दनभगवान् विष्णुके अवतार भगवान् श्रीकृष्ण का जन्म हुआ |
और इसी कवच के माहात्म्य के अनुसार अगर
किसी भी महिला का गर्भ स्त्रावित हो जाए तो पाठ करने से गर्भ की रक्षा होती है |
संतान प्राप्ति होती है |
छोटे बच्चो को नजरदोष से बचाया जा सकता है इसी कवच से |
कार्तिकेयाक्षकवच
देव्युवाच
ये ये मम सुता जातास्ते ते कंसनिषूदिताः |
कथं में ( ते ) सन्तन्तिस्तिष्ठेद् ब्रूहि में मुनिपुङ्गव ||
नारद उवाच
येनोपायेन लोकानां सन्तन्तिश्चिरजीविता |
तते सर्वं प्रवक्ष्यामि सावधानावधारय ||
विनियोग
ॐ अस्य स्कन्दाक्षयकवचस्य नारदऋषिरअनुष्टुप्
छन्दः
सेनानीर्देवता वत्सरक्षणे विनियोगः |
बाहुलेयः शिरः पायात्स्कन्धौ शङ्करनन्दनः ||
मुण्डं में पार्वतीपुत्रो हृदयँ शिखिवाहनः |
कटिं पायाच्छक्तिहस्तो जङ्घे में तारकान्तकः ||
गुहो में रक्षतां पादौ सेनानिर्वत्समुत्तमम् |
स्कन्दो में रक्षतामङ्गं दश दिगग्निभूर्मम् ||
षाण्मातुरो भये घोरे कुमारोऽव्यात् श्मशानके |
इति ते कथितं भद्रे कवचं परमाद्भुतम् ||
धृत्वा पुत्रमवाप्नोति सुभव्यं चिरजीविनम् |
नारदस्य वचः श्रुत्वा कवचं विधृतं तया ||
कवचस्य प्रसादेन जीववत्सा भवेत्सती |
कवचस्य प्रसादेन तस्याः पुत्रो जनार्दनः ||
धारिकायास्तथा पुत्रो निर्जरैरपि दुर्जयः |
|| इति श्रीउमायामलें कार्तिकेयाक्षकवचं सम्पूर्णं ||
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