श्री नीलसरस्वती स्तोत्र | Nilsarasvati Stotra |
श्री नीलसरस्वती स्तोत्र
ॐ घोररुपे महारावे सर्वशत्रुभयङ्करि |
भक्तेभ्यो वरदे देवि त्राहि मां शरणागतम् || १ ||
भयानक रुपवाली, घोर निनाद करनेवाली,
सभी शत्रुओंको भयभीत करनेवाली तथा भक्तोंमे वर प्रदान करनेवाली
हे देवि, आप मुझ शरणागतकी रक्षा करें || १ ||
ॐ सुरासुरार्चिते देवि सिद्धगन्धर्वसेविते |
जाड्यपापहरे देवि त्राहि मां शरणागतम् || २ ||
देव तथा दानवोंके द्वारा पूजित,सिद्धों तथा
गन्धर्वोंके द्वारा सेवित और जड़ता तथा पापको हरनेवाली
हे देवि, आप मुझ शरणागतकी रक्षा करें || २ ||
जटाजूटसमायुक्ते लोलजिह्वान्तकारिणि |
द्रुतबुद्धिकरे देवि त्राहि मां शरणागतम् || ३ ||
जटाजुटसे सुशोभित, चंचल जिह्वाको अंदरकी ओर करनेवाली,
बुद्धिको तीक्ष्ण बनानेवाली हे देवि,
आप मुझ शरणागतकी रक्षा करें || ३ ||
सौम्यक्रोधधरे रुपे चण्डरुपे नमोऽस्तु ते |
सृष्टिरुपे नमस्तुभ्यं त्राहि मां शरणागतम् || ४ ||
सौम्य क्रोध धारण करनेवाली, उत्तम विग्रह वाली,
प्रचण्ड स्वरुपवाली हे देवि, आपको नमस्कार है |
हे सृष्टिस्वरुपिणि, आपको नमस्कार हैं |
आप मुझ शरणागतकी रक्षा करें || ४ ||
जडानां जडतां हन्ति भक्तानां भक्तवत्सला |
मूढतां हर मे देवि त्राहि मां शरणागतम् || ५ ||
आप मुर्खोंकी मुर्खताका नाश करती हैं और
भक्तोंके लिये भक्तवत्सला हैं |
हे देवि, आप मेरी मूढ़ताको हरें और मुझ शरणागतकी रक्षा करें || ५ ||
वं ह्रूं ह्रूं कामये देवि बलिहोमप्रिये नमः |
उग्रतारे नमो नित्यं त्राहि मां शरणागतम् || ६ ||
वं ह्रूं ह्रूं बीजमन्त्रस्वरुपिणी हे देवि,
मैं आपके दर्शनकी कामना करता हूँ |
बलि तथा होमके प्रसन्न होनेवाली हे देवि, आपको नमस्कार है |
उग्र आपदाओंसे तारनेवाली हे उग्रतारे,
आपको नित्य नमस्कार है,
आप मुझ शरणागतकी रक्षा करें || ६ ||
बुद्धिं देहि यशो देहि कवित्वं देहि देहि मे |
मूढत्वं च हरेद्देवि त्राहि मां शरणागतम् || ७ ||
हे देवि, आप मुझे बुद्धि दें, कीर्ति दें,
कवित्वशक्ति दें और मेरी मूढताका नाश करें |
आप मुझ शरणागतकी रक्षा करें || ७ ||
इन्द्रादिविलसद्द्वन्द्ववन्दिते करुणामयि |
तारे ताराधिनाथास्ये त्राहि मां शरणागतम् || ८ ||
इंद्रा आदिके द्वारा वन्दित शोभायुक्तचरणयुगलवाली,
करुणासे परिपूर्ण, चन्द्रमाके समान मुखमण्डलवाली और
जगत्को तारनेवाली हे भगवती तारा,
आप मुझ शरणागतकी रक्षा करें || ८ ||
अष्टम्यां च चतुर्दश्यां नवभ्यां यः पठेन्नरः |
षण्मासैः सिद्धिमाप्नोति नात्र कार्या विचारणा || ९ ||
जो मनुष्य अष्टमी,
नवमी तथा चतुर्दशी तिथिको इस स्तोत्रका पाठ करता है, वह छः महीनेमें सिद्धि प्राप्त कर लेता है,
इसमें कोई संदेह नहीं करना चाहिये || ९ ||
मोक्षार्थी लभते मोक्षं धनार्थी लभते धनम् |
विद्यार्थी लभते विद्यां तर्कव्याकरणादिकम् || १० ||
इसका पाठ करनेसे मोक्षकी कामना करनेवाला मोक्ष प्राप्त कर लेता है,
धन चाहनेवाला धन पा जाता है
और विद्या चाहनेवाला विद्या तथा तर्क व्याकरण
आदिका ज्ञान प्राप्त कर लेता है || १० ||
इदं स्तोत्रं पठेद्यस्तु सततं श्रद्धयाऽन्वितः |
तस्य शत्रुः क्षयं याति महाप्रज्ञा प्रजायते || ११ ||
जो मनुष्य भक्तिपरायण होकर सतत इस स्तोत्रका पाठ करता है, उसके शत्रुका नाश हो जाता है और उसमें महान् बुद्धिका उदर हो जाता है || ११ ||
पीडायां वापि संग्रामे जाड्ये दाने तथा भये |
य इदं पठति स्तोत्रं शुभं तस्य न संशयः || १२ ||
इति प्रणम्य स्तुत्वा च योनिमुद्रां प्रदर्शयेत् || १३ ||
जो व्यक्ति विपत्तिमें, संग्राममें, मूर्खत्वकी दशामें, दानके समय तथा भयकी स्थितिमें इस स्तोत्रको पढ़ता है,
उसका कल्याण हो जाता है,
इसमें कोई संदेज नहीं है |
इस प्रकार स्तुति करनेके अनन्तर देवीको प्रणाम करके उन्हें
योनिमुद्रा दिखानी चाहिए || १२-१३ ||
|| इति नीलसरस्वतीस्तोत्रं सम्पूर्णम् ||
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