यज्ञोपवीत धारण करने की विधि | Yagyopavit Dharan Vidhi |

 

यज्ञोपवीत धारण करने की विधि

यज्ञोपवीत धारण करने की विधि

यज्ञोपवीत धारण करने का सम्पूर्ण विधान |

सर्वप्रथम जानना जरुरी है की जनेऊ कितनी लम्बी होनी चाहिए यह बहुत जरुरी आवश्यक है |

कात्यायन के अनुसार यज्ञोपवीत कमर तक ( कटि भाग ) तक होनी चाहिए |

यज्ञोपवीत अधिक लम्बी नहीं होनी चाहिए |

वशिष्ठ के अनुसार नाभि के ऊपर यज्ञोपवीत होने से अर्थात बहुत छोटी यज्ञोपवीत होने से आयुनाश होता है |

नाभि के निचे होने से तपबल क्षय होता है |

अतः सदैव यज्ञोपवीत नाभि के समान अर्थात नाभि के बराबर मात्रा में धारण करनी चाहिए |


यज्ञोपवीत धारण करने की सामग्री :

यज्ञोपवीत नाभि के बराबर - 1

अक्षत - एक छोटी कटोरी भरकर

चन्दन टिका लगाने के लिए


यज्ञोपवीत धारण करने का क्रम :

आचमन

प्राणायाम

सङ्कल्प

यज्ञोपवीत प्रक्षालन

हाथो से सम्पुट बनाना

तन्तु  देवताओ का आवाहन

ग्रंथि देवता आवाहन

मानसिक पूजा

यज्ञोपवीत ध्यान

सूर्य प्रदर्शन

यज्ञोपवीत धारण मंत्र

जीर्ण यज्ञोपवीत त्याग

यथा शक्ति गायत्री मंत्र जाप

गायत्री मंत्र जाप अर्पण करना

सङ्कल्प छोड़ना।


आचमन :

ऋग्वेदाय नमः |

यजुर्वेदाय नमः |

सामवेदाय नमः |

अथर्ववेदाय नमः |

बोलकर अपने हाथ धोये


पश्चात प्राणायाम करे :

पूरक |

गहरी सांस लेना |

कुम्भक |

उस सांस को जब तक हो सके अपने पेट में रककर रखे |

रेचक |

सांस को छोड़ना |

फिर अपने हाथ धोये |

प्राणायाम करते समय गायत्री मंत्रोच्चारण करे

गायत्री मंत्र मन में ही बोले |


सङ्कल्प

विष्णुः विष्णुः विष्णुः अत्र अद्य मासोत्तम _______मासे

________पक्षे  _______तिथौ _______नक्षत्रे ________योगे________करणे ______

________वासरे एवं ग्रहगणविशेषेण विशिष्टयां शुभपुण्यतिथौ मम _________गोत्र उत्पन्नस्य 

________शर्मण: श्रौतस्मार्तकर्मानुष्ठान सिद्धि अर्थम् शुभ कर्मांगत्वेन नूतन यज्ञोपवीत धारणं अहम् करिष्ये ||


( गोत्र का नाम पता हो तो गोत्र का नाम ले )


यज्ञोपवीत प्रक्षालन :

यज्ञोपवीत को जल से प्रक्षालन करे और निम्न मंत्र को उच्चारित करे |

आपोहिष्ठा मयो भुवस्ता नऽऊर्जे  दधातन

महेरणाय चक्षसे ||

जो वः शिवतमो रसस्तस्य भाजयते हनः |

उशतीरिव मातरः तस्मा अरं गमाम वो जस्य क्षयाय जिन्वथ |

आपो जनयथा नः ||

( यह एक वैदिक मंत्र है जो यजुर्वेद के अनुसार उच्चारित किया है और

लिखा भी है )


यज्ञोपवीतं करसंपुटे धृत्वा दशवारं गायत्री मन्त्रं जपेत ( जपित्वा ) :

दोनों  हाथोसे सम्पुट बनाकर सम्पुट में जनेऊ को रखे |

दसबार मन में ही गायत्री मंत्र का उच्चरण करे |  


तंतु देवता आवाहनं :

  प्रथम तन्तौ काराय नमः |

कारं आवाहयामि स्थापयामि ||


द्वितीय तन्तौ अग्नये नमः |

अग्निं आवाहयामि स्थापयामि ||


तृतीय तन्तौ नागेभ्यो नमः |

नागान आवाहयामि स्थापयामि ||


चतुर्थ तन्तौ सोमाय नमः |

सोमं आवाहयामि स्थापयामि ||


पञ्चम तन्तौ पितृभ्यो नमः |

पितृन आवाहयामि स्थापयामि ||


षष्ठतन्तौ प्रजापतये नमः |

प्रजापतिं आवाहयामि स्थापयामि ||


सप्तमतन्तौ अनिलाय नमः |

अनिलं आवाहयामि स्थापयामि ||


  अष्टंतन्तौ यमाय नमः |

यमं आवाहयामि स्थापयामि ||


नवम तन्तौ विश्वेभ्यो देवेभ्यो नमः |

विश्वान देवान आवाहयामि स्थापयामि ||


ग्रंथि मध्ये देवता आवाहन |

जहा गाँठ है वह देवताओ का आवाहन करे ||


यहाँ आप अलग नाम बोलकर भी आवाहन कर सकते हो या एक ही साथ सब नाम बोलकर भी आवाहन कर सकते हो |

यज्ञोपवीत ग्रंथिमध्ये ब्रह्मविष्णुरुद्रेभ्यो नमः |

ब्रह्म विष्णु रुद्राँ आवाहयामि स्थापयामि ||


यज्ञोपवीत को सिर्फ स्पर्श करना है |

चारवेदो का नाम बोलकर न्यसामि बोले |

 

ऋग्वेदं प्रथम दोरके न्यसामि |

यजुर्वेदं द्वितीय दोरके न्यसामि |

सामवेदं तृतीय दोरके न्यसामि |

अथर्ववेदं ग्रन्थौ  न्यसामि |


आवाहित देवताः सुप्रतिष्ठताः वरदाः भवत |

पश्चात यज्ञोपवीत की मानसिक पूजा करे |

मानसिक पूजा विधि ( मानसोपचार पूजा )


लं पृथिव्यात्मक गन्धं परिकल्पयामि |

हे प्रभु में आपको पृथ्वीरूप चंदन आपको अर्पण करता हु।


हं आकाशात्मकं पुष्पं परिकल्पयामि |

 हे प्रभु में आपको आकाशरूपी पुष्प (सुंगंध) अर्पण कर रहा हु |


यं वाय्वात्मकं धूपं परिकल्पयामि |

हे प्रभु में आपको वायुदेव के रूप में आपको धूप अर्पण कर रहा हु |


  रं वह्न्यात्मकं दीपं दर्शयामि |

हे प्रभु में आपको अग्निदेव के रूप में दीप प्रदान कर रहा हु |


वं अमृतात्मकं नैवेद्यं निवेदयामि | 

हे प्रभु में आपको अमृत रूपी नैवेद्य अर्पण कर रहा हु |


सौं सर्वात्मकं सर्वोपचारं परिकल्पयामि | 

हे प्रभु में सर्वात्म रूप से आपको संसार की सभी पूजा सामग्री आपको समर्पित कर रहा हु आप स्वीकार करे |

प्रसन्न हो |


यज्ञोपवीत ध्यान :

प्रजापतेर्यत् सहजं पवित्रं कार्पाससुत्रोद्भवब्रह्मसूत्रम् |

ब्रह्मत्वसिद्ध्यै यशःप्रकाशं जपस्य सिद्धिं कुरु ब्रह्मसूत्रम् ||


पश्चात भगवान् सूर्य को जनेऊ दिखाए |

यहाँ सूर्य का कोई भी मंत्र या श्लोक बोल सकते है |

जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम् |

तमोरिं सर्वपापघ्नं प्रणतोस्मि दिवाकरम् ||


यज्ञोपवीत धारण विधान और मंत्र :

विनियोग :

यज्ञोपवीतमिति मंत्रस्य परमेष्ठी ऋषिः लिङ्गोक्ता देवता त्रिष्टुप छन्दः यज्ञोपवीत धारणे विनियोगः |


यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत् सहजं पुरस्तात् |

आयुष्यमग्र्यं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः ||

यज्ञोपवीतमसि यज्ञस्य त्वा यज्ञोपवीतेनोपनह्यामि ||

कितने तन्तु वाली या कैसी यज्ञोपवीत धारण करनी चाहिए उसके विषय में शास्त्रों में कई प्रमाण दिए है जो हम जल्द प्रस्तुत करेंगे


जीर्ण यज्ञोपवीत त्यागः |

एतावद्दिनपर्यन्तं ब्रह्मत्वं धारितं मया |

जीर्णत्वात त्वत्परित्यागो गच्छ सूत्र यथा सुखम् ||

शुद्धभूमौ निधाय ||


पुरानी यज्ञोपवीत किसी पवित्र जगह पर विसर्जित करे या

गड्डा खोदकर उसमे गाड़  दे

यथा शक्ति गायत्री मंत्र जाप करे |

गायत्री मंत्र जाप समर्पित करे |

अनेन यथाशक्ति गायत्री मंत्रजपकर्मणा श्रीसवितादेवता प्रीयतां मम


सङ्कल्प छोड़ना :

अनेन कर्मणा मम श्रौतस्मार्तकर्म अनुष्ठान सिद्धि द्वारा श्रीभगवान परमेश्वरः

प्रीयतां मम |


|| अस्तु ||

यज्ञोपवीत धारण करने की विधि | Yagyopavit Dharan Vidhi | यज्ञोपवीत धारण करने की विधि | Yagyopavit Dharan Vidhi | Reviewed by Bijal Purohit on 1:11 pm Rating: 5

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